शिक्षा के प्रसार के लिए नागरी लिपि का सर्वत्र प्रचार आवश्यक है। - शिवप्रसाद सितारेहिंद।
 
मुक्तिबोध की कविताएं
 
 

यहाँ मुक्तिबोध के कुछ कवितांश प्रकाशित किए गए हैं। हमें विश्वास है पाठकों को रूचिकर व पठनीय लगेंगे।


ओ सूर्य, तुझ तक पहुँचने की
मूर्खता करना नहीं मैं चाहता ( मर जाऊँगा )
बस, इसलिए
उसके विरुद्ध प्रतिक्रिया
के रूप में
मैं क्यों न चमगादड बनूं
व धरित्री की ओर मुँह कर
पैर तेरे ओर करता लटकता ही रहूँ
चूंकि हे मार्तण्ड तुझ तक पहुँचना बिलकुल असम्भव है
इसलिए अपमान करना सहज है वह आत्मसम्भव

[सम्भावित रचनाकाल 1959-60]

साभार - मुक्तिबोध रचनावली दो, संपादक-नेमिचंद्र जैन

 

 
 
 
 
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