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Total Number Of Record :6नए जमाने का एटीएम
धनाधन बैंक के मैनेजर आज बड़े गुस्से में हैं। नामी-गिरामी लोगों की लोन फाइल बगल में पटकते हुए सेक्रेटरी से कहा, किसानों की फाइल ले आओ। देखते हैं, किसके पास से कितना आना है। सेक्रेटरी ने आश्चर्य से कहा, सर! कहीं ओस चाटने से प्यास बुझती है। बड़े लोगों की लोन वाली फाइलें छोड़ गरीब किसानों की फाइलों में आपको क्या मिलेगा। किसानों के सारे लोन एक तरफ, हाई-प्रोफाइल लोन एक तरफ। मैनेजर ने गुर्राते हुए कहा, तुम्हें क्या लगता है कि मैं बेवकूफ हूँ। यहाँ हर दिन झक मारने आता हूँ। हाई प्रोफाइल लोन वाली फाइन छूने का मतलब है बिन बुलाए मौत को दावत देना। हाई-प्रोफाइल वाले किसी से डरते नहीं हैं। इनकी पहुँच बहुत ऊपर तक होती है। मेरी गर्दन तक पहुँचना उनके लिए बच्चों का खेल है। गरीबों का क्या है, वे अपनी इज्जत बचाने के लिए कुछ भी करके लोन चुकायेंगे। वैसे भी गरीबों का सुनने वाला कौन है? देश में अस्सी करोड़ से अधिक गरीब हैं। वे केवल वोट के लिए पाले जाते हैं। ऐसे लोगों को गली का कुत्ता भी डरा जाता है।
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एक यांत्रिक संतान
उसकी कोख में बच्ची थी। अब आप पूछेंगे कि मुझे कैसे पता? कहीं डॉक्टरों को खिला-पिलाकर मालूम तो नहीं करवा लिया! यदि मैं कहूँ कि उसकी कोख में बच्चा था, तब निश्चित ही आप इस तरह का सवाल नहीं करते। आसानी से मान लेते। हमारे देश में लिंग भेद केवल व्याकरण तक सीमित है। वैचारिक रूप से हम अब भी पुल्लिंगवादी हैं। खैर जो भी हो उसकी कोख में बच्चा था या बच्ची यह तो नौ महीने बाद ही मालूम होने वाला था। चूंकि पहली संतान होने वाली थी सो घर की बुजुर्ग पीढ़ी खानदान का नाम रौशन करने वाले चिराग की प्रतीक्षा कर रही थी। वह क्या है न कि कोख से जन्म लेने वाली संतान अपने साथ-साथ कुछ न दिखाई देने वाले टैग भी लाती हैं। मसलन लड़का हुआ तो घर का चिराग और लड़की हुई तो घर की लक्ष्मी। कोख का कारक पुल्लिंग वह इस बात से ही अत्यंत प्रसन्न रहता है कि उसके साथ पिता का टैग लग जाएगा, जबकि कोख की पीड़ा सहने वाली ‘वह’ माँ बाद में बनेगी, सहनशील पहले।
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सत्ता का नया फार्मुला
एक समय था जब सरकार जनता से बनती थी। चुनाव की गर्मी के समय एयर कंडीशनर और बारिश की फुहार जैसे वायदे करने वाले जब सरकार में आते हैं, तब इनके वायदों को न जाने कौन सा लकवा मार जाता है कि कुछ भी याद नहीं रहता। अब तो जनता को बेवकूफ बनाने का एक नया फार्मूला चलन में आ गया है। चुनाव के समय S+R=JP का फार्मूला धड़ल्ले से काम करता है। यहां S का मूल्य शराब और R का मूल्य रुपया और JP का मतलब जीत पक्की। यानी शराब और रुपए का संतुलित मिश्रण गधे तक के सिर ताज पहना सकता है। यदि चुनाव जीत चुके हैं और पाँच साल का कार्यकाल पूरा होने वाला है, तब जीत का फार्मूला बदल जाता है। वह फार्मूला है PPP । यहां पहले P का मतलब पेंशन। पेंशन यानी बेरोजगारी पेंशन, वृद्धा पेंशन, विधवा पेंशन, किसान पेंशन, आदि-आदि। दूसरे P का अर्थ है पैकेज। इस पैकेज के लाखों-करोड़ों रुपए पैकेज की घोषणा कर दे फिर देखिए जनता तो क्या उनका बाप भी वोट दे देगा। वैसे भी जनता को लाखों-करोड़ों में से कुछ मिले न मिले शून्य की भरमार जरूर मिलेगी। इसी फार्मूले के तीसरे P का अर्थ है पगलाहट। जनता को मनगढ़ंत और उटपटांग उल्टे-सीधे सभी वायदे कर दें, फिर देखिए जनता में जबरदस्त पगलाहट देखने को मिलेगी।
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यंत्र, तंत्र, मंत्र | व्यंग्य
एक यंत्र था। उसके लिए राजा-रंक एक समान थे। सो, मंत्री जी की कई गोपनीय बातें भजनखबरी को पता चल गयीं। मंत्री जी कुछ कहते उससे पहले ही भजनखबरी उनकी पोल खोल बैठा। पहले तो मंत्री जी को खूब गुस्सा आया। वह क्या है न कि कुर्सी पर बने रहने के लिए गुस्से को दूर रखना पड़ता है। इसलिए मंत्री जी ने भजनखबरी को नौकरी से बर्खास्त करने की जगह उसे उसके यंत्र के साथ अपने कार्यालय में नियुक्त कर दिया।
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हैलो सूरज!
हो न हो चाचा मामा से बड़े गुस्सैले होते हैं, नहीं तो चंदा को मामा और सूरज को चाचा क्यों कहते। कभी-कभी तो उसका गुस्सा देख दादा भी कह उठते हैं। ब्रह्मांड में कई आकाशगंगा है। उनमें से एक आकाशगंगा का एक छोटा सा भाग है हमारा सौरमंडल और सौरमंडल के प्रधान हैं हमारे सूरज चाचा। सूरज चाचा एक ही स्थान पर टिके हैं। वे किसी के आगे-पीछे चिरौरी करने नहीं घूमते। बल्कि दुनिया के लोग उन्हें गर्मी की सेटिंग करने की सलाह दे डालते हैं। हाँ यह अलग बात है कि वे किसी की नहीं सुनते। उनमें 72% पेड़ों को काटने का हाइड्रोजन वाला गुस्सा, 26% बचे-खुचे पेड़ों को पानी न डालने वाला हिलियम गुस्सा, 2% पर्यावरण के नाम पर नौटंकी करने और मुँह काला करवाने वाला कार्बनी गुस्सा, और कभी-कभी किसी के पुण्य पर ऑक्सीजन बनकर प्रेम लुटाने का काम करते हैं। सूरज चाचा का रंग अभी भी सफ़ेद है, इसलिए कि वे किसी खादी की दुकान से कपड़ा नहीं लेते।
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कचरा लेखन | व्यंग्य
“लेखक महोदय! आपके अनुभव और पहुँच के चलते इस बार विश्व पुस्तक मेले में आपकी बड़ी धूम रही। जितनी बार साँसें नहीं लीं उतनी बार तो आपने पुस्तकों का लोकार्पण कर दिया। जहाँ देखिए वहाँ आप ही आप छाए हुए थे। मधुमक्खी के छत्ते की तरह फोटों खिंचवाने की लेखकों में बड़ी चुल मची थी। पता ही नहीं चल रहा था कि लेखक कौन है और उसके रिश्तेदार कौन हैं? एक सप्ताह-दस दिन गुजर जाने के बाद लेखक खुद को उन फोटो में ढूँढ़ने में गच्चा खा जाएगा। यह सब छोड़िए। यह बताइए इतनी सारी पुस्तकें घर ले आए हैं, इनका क्या करेंगे?” – मैंने पूछा।
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