साहित्य का स्रोत जनता का जीवन है। - गणेशशंकर विद्यार्थी।
 
खुदीराम बोस | 3 दिसंबर
   
 

1908 का अप्रैल महीना।

खुदीराम के दोस्तों ने देखा कि अचानक खुदीराम ने नए जूतों की एक जोड़ी खरीदी है। वे चकित हुए क्योंकि खुदीराम लंबे समय से जूते नहीं पहनते थे।

उन्होंने उत्सुकता जताई - तुमने नए जूते खरीदे हैं?

- हाँ, मैं शादी करने जा रहा हूँ।

- कहाँ?

- उत्तर की ओर।

- वापस कब लौटोगे?

- कभी नहीं! मैं अपनी ससुराल में स्थायी रूप से रहूंगा।

दोस्तों ने मजाक समझा। उन्हें क्या पता कि खुदीराम अब एक समान्य नवयुवक न होकर क्रांतिकारी बन चुका है!

सचमुच खुदीराम फिर कभी नहीं लौटे। उन दिनों देश पर मर-मिटने या 'फाँसी की सजा' को क्रांतिकारी 'शादी करवाना' कहते थे।

प्रस्तुति - रोहित कुमार

* खुदीराम भारत के सबसे युवा शहीदों में से एक थे, जिन्हें 11 अगस्त 1908 को फांसी दे दी गई थी।

 
 
 
 

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