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Total Number Of Record :2महारानी का जीवन
राम आज अत्यधिक दुःखी थे। उनका मन आज किसी कार्य में स्थिर नहीं हो रहा था। बार-बार सीता की छवि उन्हें विचलित कर रही थी। वह पुनः पञ्चवटी जाना चाहते थे, कदाचित यह सोच कर कि सीता वहाँ मिल जाये यदि सीता न भी मिली तो सीता की स्मृतियाँ तो वहाँ अवश्य ही होंगी। राज-काम से निवृत्त होकर राम अपने कक्ष में वापस आ जाते हैं। प्रासाद में रहते हुए भी उन्होंने राजमहल के सुखों से अपने आप को वंचित कर रखा था, यह सोचकर कि मेरी सीता भी तो अब अभाव पूर्ण जीवन जी रही होगी। पता नहीं वह क्या खाती होगी...? कहाँ सोती होगी...? इसी चिंता में आज उन्हें भूख भी नहीं लग रही थी। राजसी भोजन का तो परित्याग उन्होंने पहले ही कर दिया था। आज उन्होंने कन्द-मूल भी ग्रहण नहीं किये थे। जिससे माता कौशल्या अत्यंत चिंतित हो गयी थी। वह राम से मिलने उनके कक्ष की ओर जाती हैं, परन्तु मार्ग में ही सिपाही उन्हें रोक देते हैं।
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सती का बलिदान
सती-- प्रजापति दक्ष की छोटी पुत्री सती। दक्ष ने माता आदि शक्ति की कठोर तपस्या के पश्चात वरदान स्वरूप सती को प्राप्त किया था। सती का जन्म शिव से मिलन के लिए ही हुआ था।
शिव-- वह शिव जिसे प्रजापति अपना शत्रु समझते थे, ठीक विपरीत सम्पूर्ण विश्व उनको अपना भगवान। कितनी विपरीतता थी दक्ष की सोच और प्रारब्ध में... दक्ष जानते थे कि सती का जन्म क्यों हुआ है...? लेकिन फिर भी वह प्रारब्ध से लड़ने का दम्भ रखते थे। उन्होंने सती को शिव के अनुयायियों से दूर रखा, शिव भक्तों को सती से मिलने की अनुमति नहीं थी। उन्होंने सती को विश्वास दिलाया कि उसका पिता ही एक मात्र व्यक्ति है जिसने संसार को नियम-संहिताओं से सुसंस्कृत किया है। सृष्टि तो मात्र उसका अनुपालन करती है, प्रकृति के पांचों तत्व जल, अग्नि, वायु, आकाश सब उसके वश में है।
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