Warning: session_start(): open(/tmp/sess_824746f7a8961f160bdd885c07a5fdad, O_RDWR) failed: No such file or directory (2) in /home/bharatdarshanco/public_html/child_lit_details_amp.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /tmp) in /home/bharatdarshanco/public_html/child_lit_details_amp.php on line 1
 मैं रहूँ या न रहूँ - राजगोपाल सिंह की ग़ज़ल | Hindi Ghazal by Rajgopal Singh
हिंदी जाननेवाला व्यक्ति देश के किसी कोने में जाकर अपना काम चला लेता है। - देवव्रत शास्त्री।
 
मैं रहूँ या न रहूँ | ग़ज़ल (काव्य)     
Author:राजगोपाल सिंह

मैं रहूँ या न रहूँ, मेरा पता रह जाएगा
शाख़ पर यदि एक भी पत्ता हरा रह जाएगा

बो रहा हूँ बीज कुछ सम्वेदनाओं के यहाँ
ख़ुश्बुओं का इक अनोखा सिलसिला रह जाएगा

अपने गीतों को सियासत की ज़ुबां से दूर रख
पँखुरी के वक्ष में काँटा गड़ा रह जाएगा

मैं भी दरिया हूँ मगर सागर मेरी मन्ज़िल नहीं
मैं भी सागर हो गया तो मेरा क्या रह जाएगा

कल बिखर जाऊँगा हरसू, मैं भी शबनम की तरह
किरणें चुन लेंगी मुझे, जग खोजता रह जाएगा

- राजगोपाल सिंह

 

Previous Page  | Index Page  |   Next Page
 
 
Post Comment
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश