अहिंदी भाषा-भाषी प्रांतों के लोग भी सरलता से टूटी-फूटी हिंदी बोलकर अपना काम चला लेते हैं। - अनंतशयनम् आयंगार।
 
राम, तुम्हारा नाम (काव्य)     
Author:रामधारी सिंह दिनकर | Ramdhari Singh Dinkar

राम, तुम्हारा नाम कण्ठ में रहे, 
हृदय, जो कुछ भेजो, वह सहे, 
दुःख से त्राण नहीं माँगूँ।

माँगें केवल शक्ति दुःख सहने की, 
दुर्दिन को भी मान तुम्हारी दया 
अकातर ध्यानमग्न रहने की।

देख तुम्हारे मृत्यु-दूत को डरूँ नहीं, 
न्योछावर होने में दुविधा करूँ नहीं।

तुम चाहो, दूँ वही, 
कृपण हो प्राण नहीं माँगें।

- रामधारीसिंह दिनकर

Previous Page  | Index Page  |   Next Page
 
 
Post Comment
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश