राम, तुम्हारा नाम कण्ठ में रहे, हृदय, जो कुछ भेजो, वह सहे, दुःख से त्राण नहीं माँगूँ।
माँगें केवल शक्ति दुःख सहने की, दुर्दिन को भी मान तुम्हारी दया अकातर ध्यानमग्न रहने की।
देख तुम्हारे मृत्यु-दूत को डरूँ नहीं, न्योछावर होने में दुविधा करूँ नहीं।
तुम चाहो, दूँ वही, कृपण हो प्राण नहीं माँगें।
- रामधारीसिंह दिनकर |