हिंदी चिरकाल से ऐसी भाषा रही है जिसने मात्र विदेशी होने के कारण किसी शब्द का बहिष्कार नहीं किया। - राजेंद्रप्रसाद।
 

बदनाम शायर (काव्य)

Author: शुभांगिनी कुमारी 'चन्द्रिका'

बदनाम शायर हूँ मगर, मेरा भी कुछ ईमान है
हूँ इश्क में रुसवा मगर, मेरी नज्म ही पहचान है
दिल ढूंढता हर मोड़ पर, तेरा पता, तेरी खबर
इक बार हो दीदार, दूँ आवाज , तुझको दर-बदर
मेरी नज़्म गाते हैं मगर, मेरा दर्द ही गुमनाम है
बदनाम शायर हूँ मगर, मेरा भी कुछ ईमान है

अपना बना या छोड़ दे, जैसी तेरी मर्जी वो कर..
लग जा गले या हो परे, हम तो खड़े दहलीज़ पर..
मेरा नाम है तेरे नाम से, तुझे चाहना मेरा काम है..
बदनाम शायर हूँ मगर, मेरा भी कुछ ईमान है

बेफिक्र हूँ जिस राह पर ,वो तो ग़ज़ल है आप की...
अब बंद होती आँख में, शफ़्फ़ाफ़ सूरत आप की..
अंजाम ये ही था मेरा, कुछ वक्त भी बेईमान है...
बदनाम शायर हूँ मगर, मेरा भी कुछ ईमान है

ना जी सके, ना रो सके, सारी उमर ये बोझ था...
उठता जनाजा देखा कर, खुद वक्त भी खामोश था...
ऐ चन्द्रिका, तेरी शहादत का यही ईनाम है ...
बदनाम शायर हूँ मगर, मेरा भी कुछ ईमान है..

- शुभांगिनी कुमारी 'चन्द्रिका'
ई-मेल: [email protected] */ // -->

 

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