हिंदी चिरकाल से ऐसी भाषा रही है जिसने मात्र विदेशी होने के कारण किसी शब्द का बहिष्कार नहीं किया। - राजेंद्रप्रसाद।
 

विनोद कुमार दवे के हाइकु (काव्य)

Author: विनोद कुमार दवे

1.
जिंदगी चाक
हम कच्ची मिट्टी है
दर्द कुम्हार

2.
बच्चों की हंसी
मनोहर मुस्कान
मन में बसी

3.
गुड्डी के खेल
छोड़ चली है सखी
पिया से मेल

4.
प्रेम सुगंध
अमिट कहानी सी
रात रानी सी

5.
दौड़ते लोग
एक ही मंजिल है
विलास भोग

6.
नकली लोग
कथनी करनी में
भेद बहुत

7.
प्रेम का रोग
इलाज बीत चुका
व्याधि बाकी है

8.
पर्वत काट
इंसानी बस्तियों की
नींव भरी है

9.
नदिया रीती
पनघट सूने है
बदली बीती

10.
तूफ़ान आए
क्या नम्र झुके पौधे
उखाड़ पाए

11.
पलाश फले
जंगल के दिल में
अनल जले


- विनोद कुमार दवे
206,बड़ी ब्रह्मपुरी
मुकाम पोस्ट - भाटून्द--306707
तहसील - बाली
जिला - पाली, राजस्थान
मोबाइल : 9166280718

ई-मेल: [email protected] */ // --> // --> // -->

* विनोद कुमार दवे की रचनायें राजस्थान पत्रिका, दैनिक भास्कर, अहा! जिंदगी, कादम्बिनी, बाल भास्कर जैसे पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित हुई हैं। आप अध्यापन के क्षेत्र में कार्यरत हैं।

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