हिंदी चिरकाल से ऐसी भाषा रही है जिसने मात्र विदेशी होने के कारण किसी शब्द का बहिष्कार नहीं किया। - राजेंद्रप्रसाद।
 

झूठी प्रीत (काव्य)

Author: एहसान दानिश

जग की झूठी प्रीत है लोगो, जग की झूठी प्रीत!
पापिन नगरी, काली नगरी,
धरम दया से खाली नगरी,
पाप से पलनेवाली नगरी,
पाप यहाँ की रीत।
जग की झूठी प्रीत है लोगो, जग की झूठी प्रीत!

फ़ानी है यह दुनिया,फ़ानी,
उठती मौजें, बहता पानी,
छोड़ भी इसकी राम कहानी,
किसकी हुई यह मीत?
जग की झूठी प्रीत है लोगो, जग की झूठी प्रीत!
मोह के दिन हैं, दुख की रातें,
लोभ के फंदे, पाप की घातें,
प्रेम के रस से ख़ाली बातें,
हार यहाँ की जीत।
जग की झूठी प्रीत है लोगो, जग की झूठी प्रीत!

-एहसान दानिश

Back

 
Post Comment
 
 
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश