हिंदी चिरकाल से ऐसी भाषा रही है जिसने मात्र विदेशी होने के कारण किसी शब्द का बहिष्कार नहीं किया। - राजेंद्रप्रसाद।
 

हिंदी साहित्य में स्त्री आत्मकथा लेखन विधा का विकास  (विविध)

Author: भारत-दर्शन संकलन

हिंदी में अन्य गद्य विधाओं की भाँति आत्मकथा विधा का आगमन भी पश्चिम से हुआ। बाद में यह हिंदी साहित्य में प्रमुख विधा बन गई। नामवर सिंह ने अपने एक व्याख्यान में कहा था कि ‘अपना लेने पर कोई चीज परायी नहीं रह जाती, बल्कि अपनी हो जाती है।' हिंदी आत्मकथाकारों ने भी इस विधा को आत्मसात कर लिया और आत्मकथा हिंदी की एक विधा के रूप में विकसित हुई।

हिंदी साहित्य में बनारसीदास जैन कृत ‘अर्द्धकथानक' को हिंदी की पहली आत्मकथा माना जाता है। इसकी रचना 1641 में हुई थी। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने इसे निर्विवाद रूप से हिंदी साहित्य में आत्मकथा की विधा की पहली किताब मानते हुए इसका महत्व स्वीकार किया है।

बनारसीदास जैन की अ'र्द्ध कथानक' (ब्रजभाषा पद्य, 1641) के अतिरिक दयानन्‍द सरस्वती कृत जीवनचरित्र (1860), भारतेन्दु हरिश्चंद्र कृत 'कुछ आप बीती, कुछ जग बीती' हिंदी की प्रारांभिक आत्मकथाएँ हैं।

उपर्युक्त सभी आत्मकथाएँ पुरुषों द्वारा लिखी गईं हैं। हिंदी में 17वीं शताब्दी से आरंभ हुई इस विधा में सबसे पहले लिखी गई महिला आत्मकथा का साक्ष्य 20वीं सदी में मिलता है।

हिंदी की पहली स्त्री आत्मकथा लेखिका जानकी देवी बजाज हैं। जिनकी आत्मकथा का नाम ‘मेरी जीवन-यात्रा' है, जो 1956 में प्रकाशित हुई।  1956 में जानकी देवी की इस आत्मकथा की प्रस्तावना आचार्य विनोबा भावे ने लिखी थी। इसके बाद कई महत्वपूर्ण महिला आत्मकथाएं आईं। इनमें अमृता प्रीतम, प्रतिभा अग्रवाल, कुसुम अंसल, कृष्णा अग्निहोत्री आदि के बाद स्त्री आत्मकथा लेखन व्यापक रूप से सामने आया। हिंदी साहित्य में कुछ महत्वपूर्ण स्त्रीआत्मकथाओं की कालक्रमानुसार सूची निम्नलिखित है-

जानकी देवी बजाज की 'मेरी जीवन-यात्रा' (1956)
अमृता प्रीतम की 'रसीदी टिकट' (1976); 'अक्षरों के साये' (1997)
प्रतिभा अग्रवाल की 'दस्तक ज़िन्दगी की' (1990); 'मोड़ ज़िन्दगी का' (1996)
कुसुम अंसल की 'जो कहा नहीं गया' (1996)
कृष्णा अग्निहोत्री की 'लगता नहीं दिल मेरा' (1997); 'और.....और औरत' (2010)
पदमा सचदेवा की 'बूंद बावरी' (1999); 'लता ऐसा कहां से लाऊं'
शिवानी की 'सुनहु तात यह अमर कहानी' (1999); 'सोने दे; एक थी रामरती'
शीला झुनझुनवाला की 'कुछ कही कुछ अनकही' (2000)
मैत्रेयी पुष्पा की 'कस्तूरी कुंडल बसै' (2002); 'गुड़िया भीतर गुड़िया' (2008)
रमणिका गुप्ता की 'हादसे' (2005)
सुनीता जैन की 'शब्दकाया' (2005)
मन्नू भंडारी की 'एक कहानी यह भी' (2007)
प्रभा खेतान की 'अन्या से अनन्या' (2007)
मृदुला गर्ग की 'राजपथ से लोकपथ पर' (2008)
चन्द्रकिरण सौनरेक्सा की 'पिंजरे की मैना' (2008)
अनीता राकेश की 'संतरे और संतरे'
ममता कालिया की 'कितने शहरों में कितनी बार' (2011)
चन्द्रकान्ता की 'हाशिए की इबारतें' (2012)
निर्मला जैन की 'ज़माने में हम' (2015)
इस्मत चुगताई की 'कागजी है पैरहन'

दिलीप कौर टिवाणा की 'नंगे पैरों का सफर' और अजीत कौर की 'खानाबदोश' महत्वपूर्ण आत्मकथाएँ हैं।

[भारत-दर्शन संकलन]

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