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सिर्फ़ बातें नहीं अब वह बात चाहिए (काव्य) |
Author: ममता मिश्रा, नीदरलैंड
करें कल्याण हिंदी का
ऐसे कुछ हाथ चाहिए।
नारों और सभाओं की
चौखट से उठाकर जो
धरें शीर्ष पर इसको
ऐसे कुछ नाथ चाहिएँ।
सिर्फ़ बातें नहीं ...
मान भूले हैं आज़ादी का
माँ की बात भूले हैं
चुकाएँ क़र्ज़ माँ का जो
निकालें बाहर उलझन से
ऐसे कुछ लाल चाहिए।
सिर्फ़ बातें नहीं ...
बड़ा है ओहदा उनका
बड़ा है महकमा उनका
निकल उससे जो बाहर
लें प्रण करें आह्वान
दिला दें न्याय हिंदी को
ऐसे कुछ साहब चाहिएँ।
सिर्फ़ बातें नहीं....
भटकी बहुत है हिंदी
सहमी बहुत है हिंदी
पता जो ढूँढ ले इसका
घर इसको पहुँचा दे
ऐसी एक डाक चाहिए।
सिर्फ़ बातें नहीं ...
इससे महरूम है पीढ़ी
नहीं उन तक कोई सीढ़ी
भटक जाएँ ना कहीं कोई
दिखा दे रास्ता उनको
ऐसा एक अभियान चाहिए।
सिर्फ़ बातें नहीं अब वह बात चाहिए
करें कल्याण हिंदी का
ऐसे कुछ हाथ चाहिए।
-ममता मिश्रा, नीदरलैंड