भाषा विचार की पोशाक है। - डॉ. जानसन।
 

मिट्टी की खुशबू (काव्य)

Author: डॉ अनीता शर्मा

कोई पूछता है, कौन सा इत्र है?
खुशबू गज़ब की आती है!
तब बीता कल मुस्काता है
इक याद जवां हो जाती है

अपनी धरती छूटी थी जब
जान पर बन आई थी
आँखों में थी गंगा-यमुना
मिट्टी सीस लगाई थी
वह पावन मिट्टी मैं
थोड़ी सी खाकर आयी थी
और थोड़ी सी बाँध पोटली
संग अपने ले आई थी

आ परदेस में वही पोटली
निज मंदिर में सजाई
मूर्ति-स्थापना हुई तो
पोटली-स्थापना भी करवाई
सुबह-शाम जब मंदिर में
ईश्वर को शीश नवाया
उठा पोटली मिट्टी की
माथे से उसे लगाया

मिट्टी भी मिट्टी में घुलके
रंग अजब दिखलाती है
देह से अब मेरी धरती की
महक रेशमी आती है

डॉ अनीता शर्मा
शंघाई(चीन)

 

Back

 
Post Comment
 
 
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश