हिंदी चिरकाल से ऐसी भाषा रही है जिसने मात्र विदेशी होने के कारण किसी शब्द का बहिष्कार नहीं किया। - राजेंद्रप्रसाद।
 

ढूँढा है हर जगह पे... (काव्य)

Author: हस्तीमल हस्ती

ढूँढा है हर जगह पे कहीं पर नहीं मिला
ग़म से तो गहरा कोई समुंदर नहीं मिला

ये तजुर्बा हुआ है मोहब्बत की राह में
खोकर मिला जो हम को वो पाकर नहीं मिला

दहलीज़ अपनी छोड़ दी जिस ने भी एक बार
दीवारो दर ही उसको मिले घर नहीं मिला

दूरी वही है अब भी करीबी के बावजूद
मिलना उसे जहां था वहाँ पर नहीं मिला

सारी चमक हमारे पसीने की है जनाब
विरसे में हमको कोई भी ज़ेवर नहीं मिला

घर से हमारी आँख-मिचौली रही सदा
आँगन नहीं मिला तो कभी दर नहीं मिला

-हस्तीमल हस्ती

 

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