किसी साहित्य की नकल पर कोई साहित्य तैयार नहीं होता। - सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'।
 
मुक्ता (काव्य)     
Author:सोहनलाल द्विवेदी

ज़ंजीरों से चले बाँधने
आज़ादी की चाह।
घी से आग बुझाने की
सोची है सीधी राह!


हाथ-पाँव जकड़ो,जो चाहो
है अधिकार तुम्हारा।
ज़ंजीरों से क़ैद नहीं
हो सकता ह्रदय हमारा!

-सोहनलाल द्विवेदी

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