जब हम अपना जीवन, जननी हिंदी, मातृभाषा हिंदी के लिये समर्पण कर दे तब हम किसी के प्रेमी कहे जा सकते हैं। - सेठ गोविंददास।
 
व्यापारी और नक़लची बंदर  (बाल-साहित्य )     
Author:अज्ञात

एक टोपी बेचने वाला व्यापारी था वह नगर से टोपियाँ लाकर गाँव में बेचा करता था। एक दिन वह दोपहर के समय जंगल में जा रहा था कि थककर एक पेड़ के नीचे बैठ गया। उसने टोपियों की गठरी एक तरफ रख दी। थकावट के कारण पेड़ की छाँव और ठंडी हवा के चलते शीघ्र ही टोपी वाले व्यापारी को नींद आ गई।

पेड़ पर कुछ बंदर बैठे थे। व्यापारी को सोता देख वे पेड़ से नीचे उतर आए और उन्होंने वहां पड़ी गठरी खोल ली। यह देखकर की व्यापारी ने टोपी पहन रखी है अपने नक़लची स्वभाव के कारण सभी बंदरों ने भी टोपियां पहन लीं। फिर सभी बंदर मस्ती में उछल-कूद करने लगे।

उनकी उछल-कूद से व्यापारी की नींद खुली तो उसने सभी बन्दरों को टोपियाँ पहने देखा। व्यापारी बड़ा दुखी हुआ वह सिर से टोपी उतार सोच में अपना सिर खुजलाने लगा तो उसने देखा कि बंदर भी वैसा ही करने लगे। व्यापारी को उनकी नक़लची प्रवृति का ध्यान आया और उसे एक उपाय सुझा। उसने जानबूझ कर बंदरों को दिखाते हुए अपनी टोपी गठरी पर फेंक दी। बंदरों ने भी उसकी नक़ल करते हुए अपनी-अपनी टोपी फेंक दी। अब व्यापारी ने बंदरों को लाठी दिखाकर शोर करते हुए भगा दिया व सभी टोपियां इकट्ठी करके अपनी गठरी बाँध व्यापारी ने अपनी राह पकड़ी।

शिक्षा - नक़ल के लिए भी अक्ल चाहिए।

 

Previous Page  |  Index Page  |   Next Page
 
 
Post Comment
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश