हिंदी चिरकाल से ऐसी भाषा रही है जिसने मात्र विदेशी होने के कारण किसी शब्द का बहिष्कार नहीं किया। - राजेंद्रप्रसाद।
 
कल कहाँ थे कन्हाई  (काव्य)     
Author:भारत दर्शन संकलन

कल कहाँ थे कन्हाई हमें रात नींद न आई
आओ -आओ कन्हाई न बातें बनाओ
कल कहाँ थे कन्हाई हमें रात नींद न आई।

एजी अपनी जली कुछ कह बैठूँगी,
सास सुनेगी रिसाई हमें नींद न आई।

एजी तुमरी तो रैन -रैन से गुजरी,
कुवजा से आँख लगाई हमें रात नींद न आई।

एजी चोया चंदन और आरती,
मोति न मांग भराई हमें रात नींद न आई।

कल थे कहाँ कन्हाई हमें रात नींद न आई,
आओ -आओ कन्हाई न बातें बनाओ,
कल थे कहाँ कन्हाई हमें रात नींद न आई।

 

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