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 भारत की साहित्यिक एवं सांस्कृतिक व्यापकता पर गोष्ठी
हिंदी जाननेवाला व्यक्ति देश के किसी कोने में जाकर अपना काम चला लेता है। - देवव्रत शास्त्री।
 
भारत की साहित्यिक एवं सांस्कृतिक व्यापकता पर गोष्ठी (विविध)     
Author:अरूणा घवाना एवं तरूण घवाना

26 जनवरी 2022: भारत के 73वें गणतंत्र दिवस के अवसर पर उत्थान फ़ाउंडेशन, द्वारका नई दिल्ली द्वारा अंतरराष्ट्रीय ऑनलाइन गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस गोष्ठी में ‘गणतंत्र भारत की साहित्यिक एवं सांस्कृतिक व्यापकता’ पर चर्चा हुई जिसमें सहभागियों ने अपने संस्मरण और काव्य पाठ प्रस्तुत किए।  कार्यक्रम का संचालन अरूणा घवाना ने किया और अपना काव्य पाठ भी किया। आयोजक तरूण घवाना ने बताया कि भारत से इतर 11 देशों के लोगों ने मंच साझा किया। वेबीनार की मुख्य अतिथि न्यूजीलैंड से डॉ पुष्पा वुड और अतिथि वक्ता भारत से प्रो॰ विमलेशकांति वर्मा थे। इसके अतिरिक्त केंद्रीय हिंदी संस्थान की निदेशक डॉ बीना शर्मा भी सम्मिलित हुईं। भारतीय उच्चायोग त्रिनिदाद-टोबैगो के द्वितीय सचिव (हिंदी, शिक्षा एवं संस्कृति) शिव कुमार निगम के अतिरिक्त रुकमिणी होल्लास ने भी भाग लिया। मॉरीशस से कला एवं संस्कृति मंत्रालय के संस्कृति अधिकारी राकेश श्रीकिसून ने अपना वक्तव्य रखा। यूएसए से शुभ्रा ओझा और यूके से शैल अग्रवाल ने अपनी प्रस्तुति दी। 

नीदरलैंड से प्रो॰ मोहनकांत गौतम, स्वीडन से सुरेश पांडेय और पोलैंड से डॉ संतोष तिवारी उपस्थित थे। सूरीनाम से लालाराम लैला, फ़िजी से मनीषा रामरक्खा, यूएई से मंजू तिवारी ने भाग लिया। सभी वक्ताओं ने स्वीकारा कि विश्वगुरू बनने जा रहे भारत की साहित्यिक और सांस्कृतिक व्यापकता धरा के एक छोर से पग-पग चलती हुई आसमान की बुलदियों को चूम रही है।

भौगोलिक दूरियों के बावजूद भी सांस्कृतिक व साहित्यिक समन्वयता भारतीयता के भूमंडलीकरण का प्रमाण है।

- अरूणा घवाना एवं तरूण घवाना

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