भाषा विचार की पोशाक है। - डॉ. जानसन।
 

आजकल हम लोग ... | ग़ज़ल

 (काव्य) 
 
रचनाकार:

 राजगोपाल सिंह

आजकल हम लोग बच्चों की तरह लड़ने लगे
चाबियों वाले खिलौनों की तरह लड़ने लगे

ठूँठ की तरह अकारण ज़िंदगी जीते रहे
जब चली आँधी तो पत्तों की तरह लड़ने लगे

कौन सा सत्संग सुनकर आये थे बस्ती के लोग
लौटते ही दो क़बीलों की तरह लड़ने लगे

हम फ़कत शतरंज की चालें हैं उनके वास्ते
दी ज़रा-सी शह तो मोहरों की तरह लड़ने लगे

इससे तो बेहतर था हम जाहिल ही रह जाते, मगर
पढ़ गए, पढ़कर दरिंदों की तरह लड़ने लगे

- राजगोपालसिंह

 

Back
 
Post Comment
 
Type a word in English and press SPACE to transliterate.
Press CTRL+G to switch between English and the Hindi language.
 

सब्स्क्रिप्शन

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश