भाषा विचार की पोशाक है। - डॉ. जानसन।
 

आओ चलें घूम लें हम भी

 (बाल-साहित्य ) 
 
रचनाकार:

 दिविक रमेश

छुट्टियों के आने से पहले
हम तो लगते खूब झूमने।
कह देते मम्मी-पापा से
चलो चलो न चलो घूमने।

बहुत मज़ा आता है जब जब
हमें घूमने को है मिलता।
कभी इधर तो कभी उधर हम
चलें घूमने मन यह करता।

कभी करे मन गांव चलें हम
फसलें जहां मस्त लहरातीं।
हरे भरे पेड़ों पर बैठीं
झूम झूम चिड़ियां हों गातीं।

कभी करे मन जाकर दिल्ली
मैट्रो जी की सैर करें हम।
ऒर आगरा जाकर देखें
ताजमहल की सुन्दरता हम।

अगर देखना हवा महल तो
जयपुर हमको जाना होगा।
और पहाड़ देखने हों तो
शिमला हमकॊ जाना होगा।

सुन्दर सागर और तट उनके
गौवा में जाकर देखेंगे।
चेरापूंजी में जाकर हम
मेघों का सागर देखेंगे।

कितना बड़ा देश हॆ अपना
घूम घूम कर हम देखेंगे।
डोसे, इडली, रसगुल्लों के
शहर घूम कर हम देखेंगे।

जब भी नई जगह जाते हैं
नया नया सबकुछ क्यों दिखता?
धरती नई, नई वस्तुएं
नया नया अनुभव क्यों मिलता?

-दिविक रमेश

Back
 
Post Comment
 
Type a word in English and press SPACE to transliterate.
Press CTRL+G to switch between English and the Hindi language.
 

सब्स्क्रिप्शन

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश