जिस देश को अपनी भाषा और अपने साहित्य के गौरव का अनुभव नहीं है, वह उन्नत नहीं हो सकता। - देशरत्न डॉ. राजेन्द्रप्रसाद।
 

अजनबी नज़रों से | ग़ज़ल

 (काव्य) 
 
रचनाकार:

 राजगोपाल सिंह

अजनबी नज़रों से अपने आप को देखा न कर
आइनों का दोष क्या है? आइने तोड़ा न कर

यह भी मुमकिन है ये बौनों का नगर हो इसलिए
छोटे दरवाज़ों की ख़ातिर अपना क़द छोटा न कर

यह सनक तुझको भी पत्थर ही न कर डाले कहीं
हर किसी पत्थर को पारस जानकर परखा न कर

रात भी गुज़रेगी, कल सूरज भी निकलेगा ज़रूर
ये अंधेरे चन्द लमहों के हैं, जी छोटा न कर

काँच सारी खिड़कियों के धूप ने चटका दिए
वक़्त की चेतावनी को और अनदेखा न कर

- राजगोपाल सिंह

 

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