हिंदी चिरकाल से ऐसी भाषा रही है जिसने मात्र विदेशी होने के कारण किसी शब्द का बहिष्कार नहीं किया। - राजेंद्रप्रसाद।
 

बालेश्वर अग्रवाल : यादों के झरोखों से

 (कथा-कहानी) 
 
रचनाकार:

 रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

यादों के झरोखों से

स्व. बालेश्वर अग्रवाल जी ने विश्व भर में प्रवासियों एवं हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए ऐतिहासिक कार्य किया है। विश्व भर में उनके प्रति आदर का भाव रखने वाले लोगों की संख्या बहुत बड़ी है। बहुत से लोगों को शायद इसका ज्ञान न हो कि आज का प्रवासी मंत्रालय बालेश्वर जी की ही देन है।

कई देशों में जहां भारतीय मूल के लोगों की बहुलता है, वहां तो बालेश्वर जी का भारतीय उच्चायुक्त / राजदूत के समान ही सम्मान रहा है।
बालेश्वर जी के प्रयास से ही समाचारपत्रों के कार्यालयों में नागरी लिपि के दूरमुद्रक (टेलीप्रिंटर) का प्रयोग प्रारम्भ हुआ अन्यथा केवल अंग्रेजी पत्रों के कार्यालयों में दूरमुद्रक होते थे।

बालेश्वर अग्रवाल हिन्दुस्थान समाचार (बहुभाषी न्यूज एजेंसी) के 1956 से 1982 तक प्रधान सम्पादक व महा प्रबंधक रहे। आपके अथक परिश्रम से ही ‘हिन्दुस्थान समाचार’ की गणना भारतीय भाषाओं की सर्वाधिक प्रतिष्ठित समाचार एजेंसी के रूप में होने लगी।

हिन्दुस्थान समाचार से अलग होने के पश्चात उन्होंने अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद का काम सँभाला और साथ ही युगवार्ता प्रसंग सेवा (युगवार्ता फीचर सर्विस) आरंभ की और इसके माध्यम से हिंदी पत्रकारिता से जुड़े रहे।

बालेश्वर जी से मेरा संवाद 1987 में ‘युग वार्ता फीचर’ के माध्यम से आरंभ हुआ था। उनका कार्यालय उस समय भगत सिंह मार्केट में होता था। मैं 1988 में न्यूज़ीलैंड आ बसा तो बालेश्वर जी ने अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद (ए.आर.एस.पी) के बुलेटिन के लिए समाचार भेजते रहने को कहा। फिर मैं लगातार उन्हें यहाँ की जानकारी देता रहा और वह उनके बुलेटिन में प्रकाशित होती रही। चाहे न्यूज़ीलैंड में भारतीय मंदिर निर्माण का समाचार हो, राधास्वामी के आने का समाचार हो या किसी भारतीय कलाकार के न्यूज़ीलैंड आने का समाचार हो वह अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद के बुलेटिन में प्रकाशित होते रहते थे।

बालेश्वर जी सदैव मार्गदर्शन करते रहे। 1993 में मॉरीशस में होने वाले त्रि-दिवसीय प्रवासी भारतीय सम्मेलन में सम्मिलित होने का सुझाव हो, 1998 का विदेशों में बसे भारतवंशी सांसदों का सम्मेलन हो या भारत में प्रवासी भारतीयों का कोई कार्यक्रम हो वे मुझसे साझा करना न भूलते थे। मुझपर उनका असीम स्नेह रहा।

1996 में मैंने अपनी इच्छा जतायी कि मैं हिंदी पत्रिका चलाना चाहता हूँ। बालेश्वरजी बोले—‘दुबारा सोच लो। बड़ा मुश्किल काम है। कर पाओगे?’ पत्रिका शुरू हुई और जब ‘भारत-दर्शन’ इंटरनेट पर विश्व का सबसे पहला प्रकाशन बना तो उनसे शाबासी भी मिली।

अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद का न्यूज़ीलैंड दौरा

1997 के फरवरी मास में बालेश्वर जी अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद (ए.आर.एस.पी) दल के साथ न्यूज़ीलैंड आए थे। ऑकलैंड एयरपोर्ट पर मेरे साथ इंडियन एसोसिएशन के प्रधान कानू भाई पटेल, पूर्व रेस रिलेशन्स कॉंसिलिएटर डॉ राजेन प्रसाद व कुछ अन्य सदस्य थे। ऑकलैंड एयरपोर्ट से हम सीधे ‘महात्मा गांधी सेंटर’ में गए, जहां सभी इकट्ठे हुए और फिर शाम को सदस्यों के अभिनंदन के लिए एक कार्यक्रम रखा गया। अगली सुबह से हमें यहाँ के लोगों, भारतीय व्यापारियों, भारतीय स्थलों व विभिन्न भारतीय समुदायों से मिलना था।

बालेश्वर जी का अनुशासन देखने योग्य था। यदि सुबह 8 बजे कहीं जाना होता तो आठ बजने से पाँच मिनट पहले ही वे तैयार खड़े मिलते। इस दल में हिंदी के पत्रकार और लेखक स्व भानुप्रताप शुक्ल भी आए थे। यहाँ इनके दौरे का उत्तरदायित्व मुझपर था। उस समय श्री के एम मीणा यहाँ भारत के उच्चायुक्त थे। उच्चायुक्त कार्यालय वैलिंगटन वेलिंग्टन (न्यूज़ीलैंड की राजधानी) में स्थित है। ऑकलैंड में ए.आर.एस.पी के सदस्यों की देखभाल हमारी पत्रिका (भारत-दर्शन) कर रही थी और हमें यहाँ की इंडियन एसोसिएशन का भरपूर सहयोग मिला था। वेलिंग्टन में उच्चायुक्त कार्यालय और डॉ पुष्पा भारद्वाज-वुड सदस्यों के अभिनंदन व देखभाल के लिए उपस्थित थे। बालेश्वर जी व ए.आर.एस.पी के सदस्य ऑकलैंड व वेलिंग्टन के अतिरिक्त हैमिल्टन भी गए। हैमिल्टन में दुग्गल बंधुओं ने आतिथ्य संभाला। वे बालेश्वर जी से परिचित थे।

ऑकलैंड में मैंने जब पूछा कि यहाँ कहाँ-कहाँ जाना चाहेंगे, वे बोले हमें भारतीयों से मिलना है। उनके जीवन व सामाजिक दिनचर्या को जानना है। उनकी कठिनाइयों को समझना है। बालेश्वर जी व कुछ अन्य वरिष्ठ सदस्यों की अधिक रुचि भारतवंशियों व उनके सामाजिक जीवन में थीं। अगले कई दिन ऑकलैंड में बिताए गए। उन्होंने यहाँ के भारतीय स्थल देखे, भारतीय दुकानें, मंदिर, एसोसिएशन व धार्मिक स्थल देखे। सामुदायिक केन्द्रों में गए, भारतवंशियों से मिले और जनसभाओं को संबोधित किया। ऑकलैंड में स्थित रेस रिलेशन्स कॉंसिलिएटर के कार्यालय में भी एक सभा का आयोजन किया गया जिसमें अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद के सभी सदस्यों से रेस रिलेशन्स कॉंसिलिएटर, डॉ राजेन प्रसाद ने साक्षात्कार किया। डॉ राजेन प्रसाद ने बालेश्वर जी व सभी सदस्यों को न्यूज़ीलैंड के बारे में जानकारी दी। इसके अतिरिक्त उन्हें माओरी लोगों (न्यूज़ीलैंड के मूल निवासियों) व उनकी संस्कृति के बारे में भी जानकारी दी गई।

परिषद के बुलेटिन को ऑनलाइन प्रकाशित करने पर चर्चा

फरवरी 1997 के अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद के दौरे के दौरान बालेश्वरजी को मैंने ‘युग वार्ता फीचर’ को इंटरनेट पर प्रकाशित करने का सुझाव दिया तो उन्होंने बड़े स्नेह से मेरे कंधे पर हाथ टिकाते हुए उत्तर दिया, ‘युग वार्ता’ वाला विचार अच्छा है लेकिन हमें अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद के बुलेटिन को इंटरनेट पर प्रकाशित करना होगा। यह बेहतर रहेगा।‘ तभी स्व भानुप्रताप शुक्ल भी वार्तालाप में सम्मिलित हो गए और हम कुछ देर तक इंटरनेट के बारे में चर्चा करते रहे। तभी अन्य साथी भी ऑकलैंड के महात्मा गांधी सेंटर में आ पहुंचे और हम अपने अगले कार्यक्रम में लग गए। फिर 1998 में दुबारा ऑनलाइन प्रकाशन की चर्चा हुई और बाद में 1999 के अंत में अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद का बुलेटिन ऑनलाइन प्रकाशित होने लगा। इस ऑनलाइन बुलेटिन का वैब एड्रैस उस समय वर्तमान वेब डोमेन से भिन्न था।

जब भारत-दर्शन पढ़कर बालेश्वरजी खिलखिलाकर हँस पड़े

2001 में मैंने अपनी भारत यात्रा के समय बालेश्वरजी को ‘भारत-दर्शन’ के कुछ अंक भेंट किए। उस समय सहयोग परिषद के कुछ अन्य साथी मनोहर पुरी, मल्होत्रा जी व पी सी भारद्वाज भी वहाँ थे। बालेश्वर जी पत्रिकाएँ उलट-पलट के देखने लगे और भारत-दर्शन के एक अंक में प्रकाशित कुछ सामग्री पढ़कर ज़ोर से ठहाका लगाकर हँसते हुए अन्य मित्रों को भी पत्रिका दिखाने लगे। भारत-दर्शन के नवंबर-दिसंबर 2000 अंक में प्रकाशित निम्नलिखित सूचना ने बालेश्वरजी को आकृष्ट किया था—

उपर्युक्त सूचना पर बालेश्वरजी की टिप्पणी थी, ‘यह अच्छा प्रकाशित किया है। किसी पत्रिका को छुट्टी पर जाते पहली बार देखा है।‘ फिर उन्होंने अपने मित्रों को बताया कि जब ये यहाँ (भारत) आए हुए हैं तो पत्रिका कौन निकालता? मैं यथासंभव अपने स्तर पर पत्रिका प्रकाशित कर रहा था और मेरी अनुपस्थिति में पत्रिका का प्रकाशन संभव न था। यथा ‘भारत-दर्शन छुट्टी पर’ जैसी जानकारी पाठकों को देनी आवश्यक थी। फिर देर तक हम बालेश्वरजी के कार्यालय में बैठे बातें करते रहे।

बालेश्वरजी के फीजी से संबंध

2000 में जब फीजी में कू (तख़्तापलट) हुआ तो मैं ज़ी न्यूज़ नेटवर्क, पांचजन्य और न्यूज़ीलैंड की एक एजेन्सी के लिए ‘कवर’ कर रहा था। वहीं कुछ युवाओं ने भारत जाकर वहाँ के राजनेताओं से मिलने की इच्छा जतायी। मैंने बालेश्वर जी से संपर्क किया और उन्होंने सब प्रबंध कर दिया। फीजी से यह भारतवंशियों का दल भारत गया था जिनकी पूरी देखभाल बालेश्वर जी ने ही की थी। फीजी के लिए बालेश्वरजी ने बहुत कुछ किया जो अपने आप में एक अलग कहानी है।

वसुधैव कुटुम्बकम् : विश्व भर में फैले हैं बालेश्वरजी के चाहने वाले

बालेश्वर जी के चाहने वाले तो पूरे संसार में फैले हुए है, उनके चाहने वाले प्रशांत में न हों, यह भला कैसे संभव हो सकता है?

न्यूज़ीलैंड के पूर्व गवर्नर जनरल सर आनंद सत्यानंद से पिछले दिनों मुलाक़ात हुई तो उन्होंने बालेश्वर जी को याद करते हुए, उन्हें एक नेक इंसान बताया। बालेश्वर जी से इनकी कई बार मुलाक़ात हुई है।

न्यूज़ीलैंड में वेलिंगटन निवासी डॉ पुष्पा भारद्वाज बालेश्वर जी के संपर्क में रहीं हैं, अपना अनुभव साझा करते हुए उन्होंने बालेश्वर जी को दुनिया से हटकर एक विराट व्यक्तित्व बताया।

बालेश्वर जी भारतवंशियों की हर क्षण मदद को तत्पर रहते थे। किसी को अपने पूर्वजों के बारे में जानकारी खोजनी हो, अपनी जड़ें तलाशनी हों या भारत में अपने उद्योग-धंधे के बारे में समस्या हो, बालेश्वर जी के पास हर समस्या का समाधान था। ऐसे दर्जनों लोगों को मैं व्यक्तिगत तौर पर जानता हूँ जो अपनी समस्या लेकर बालेश्वर जी के पास गए और उनकी समस्या का निदान हुआ। बस, एक बार उन्हें कह दिया तो आप निश्चिन्त!
बालेश्वरजी का हृदय विशाल था और उनका बड़प्पन एवं विनम्रता उससे भी विशाल। वे सचमुच एक सहज, सरल और सच्चे महामानव थे।

- रोहित कुमार ‘हैप्पी’, न्यूज़ीलैंड
[ साभार : प्रवासी जगत, केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा ] 

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