हिंदी चिरकाल से ऐसी भाषा रही है जिसने मात्र विदेशी होने के कारण किसी शब्द का बहिष्कार नहीं किया। - राजेंद्रप्रसाद।
 

नए जमाने का एटीएम    

 (विविध) 
 
रचनाकार:

 डॉ सुरेश कुमार मिश्रा उरतृप्त

धनाधन बैंक के मैनेजर आज बड़े गुस्से में हैं। नामी-गिरामी लोगों की लोन फाइल बगल में पटकते हुए सेक्रेटरी से कहा, किसानों की फाइल ले आओ। देखते हैं, किसके पास से कितना आना है। सेक्रेटरी ने आश्चर्य से कहा, सर! कहीं ओस चाटने से प्यास बुझती है। बड़े लोगों की लोन वाली फाइलें छोड़ गरीब किसानों की फाइलों में आपको क्या मिलेगा। किसानों के सारे लोन एक तरफ, हाई-प्रोफाइल लोन एक तरफ। मैनेजर ने गुर्राते हुए कहा, तुम्हें क्या लगता है कि मैं बेवकूफ हूँ। यहाँ हर दिन झक मारने आता हूँ। हाई प्रोफाइल लोन वाली फाइन छूने का मतलब है बिन बुलाए मौत को दावत देना। हाई-प्रोफाइल वाले किसी से डरते नहीं हैं। इनकी पहुँच बहुत ऊपर तक होती है। मेरी गर्दन तक पहुँचना उनके लिए बच्चों का खेल है। गरीबों का क्या है, वे अपनी इज्जत बचाने के लिए कुछ भी करके लोन चुकायेंगे। वैसे भी गरीबों का सुनने वाला कौन है? देश में अस्सी करोड़ से अधिक गरीब हैं। वे केवल वोट के लिए पाले जाते हैं। ऐसे लोगों को गली का कुत्ता भी डरा जाता है। 

मैनेजर की बातचीत के दौरान एक बंदा सूट-बूट पहने कैबिन में घुस आया। अपना परिचय देते हुए खुद को मनीटेक सोल्यूशन का प्रतिनिधि बताया। उसने कहा, मैनेजर साहब आजकल बैंकों की हालत बड़ी खस्ता हो चली है। छोटी मछलियाँ पैसा जमा करती हैं, तो बड़ी मछलियाँ उसे लेकर रफू-चक्कर हो जाती हैं। ऐसे में बैंक ठन-ठन गोपाल नहीं बनेगा तो क्या भगवान कुबेर बनेगा। इसलिए इस स्थिति से उबारने के लिए हमने एक मशीन बनाई है, जिसका नाम है – आओ समझौता करें। इस यंत्र को एटीएम के भीतर फिट करना पड़ता है। मैनेजर ने  आश्चर्य से पूछा, इससे क्या होगा। प्रतिनिधि ने कहा, मान लीजिए कोई व्यक्ति एटीएम से पैसे ड्रा करने आता है। अपनी इच्छुक धनराशि एंटर करते ही मशीन कह उठेगी, महोदय एटीएम में इतना पैसा नहीं है। मैं आपके हाथ-पैर जोड़ती हूँ। कृपया थोड़ी राशि निकालें। यदि इस पर व्यक्ति आपति जताता है और उसके विरुद्ध जाकर अपनी इच्छुक धनराशि की मांग करता है, तब मशीन कह उठेगी,  भारत देश हमारी मातृभूमि है। यहाँ रहने वाले सभी हमारे भाई-बहन हैं। बची-खुची राशि का मिल-बैठकर इस्तेमाल करना चाहिए। देशभक्ति का मतलब केवल जान लुटाना नहीं होता। एटीएम से कम धन राशि निकालना भी देशभक्ति है। यदि इस पर भी व्यक्ति नहीं मानता है, तो वह उसे डराएगी-धमकाएगी और कहेगी, तुम्हें इतने पैसों की जरूरत क्यों है? मैनेजर ने बीच में टोकते हुए कहा, कमाल है व्यक्ति पैसा अपनी जरूरतों के लिए निकालता है। सामान खरीदी, शादी, अंत्येष्ठि अन्य क्रियाकलापों के लिए पैसा नहीं निकालेगा तो और क्या करेगा? प्रतिनिधि ने कहा, यह मशीन दर्शन बोध भी कराती है। इसमें शादी, अंत्येष्ठि आदि कारणों के लिए पैसे निकालने के विकल्प होते हैं। शादी का बटन दबाने पर मशीन कह उठेगी, शादी करने से क्या फायदा। झंझट ही झंझट। सिंगल जिंदगी – मस्त जिंदगी। यदि कोई अंत्येष्टि के लिए राशि एंटर करता है तब मशीन कह उठेगी, जब आदमी ही मर गया तो पैसा लेकर क्या करोगे। पैसों का मोह करना व्यर्थ है। इसलिए तुम यहाँ से लौट जाओ।   

यह सब सुन मैनेजर को मशीन इतनी अच्छी लगी कि आसपास की अपनी शाखाओं के सभी एटीएम में इसे लगाने का फैसला किया।

-डॉ सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’
 ई-मेल drskm786@gmail.com

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