नागरी प्रचार देश उन्नति का द्वार है। - गोपाललाल खत्री।
 

 निवेदन

 (काव्य) 
 
रचनाकार:

 मैथिलीशरण गुप्त | Mathilishran Gupt

राम, तुम्हें यह देश न भूले,
धाम-धरा-धन जाय भले ही,
यह अपना उद्देश न भूले।
निज भाषा, निज भाव न भूले,
निज भूषा, निज वेश न भूले।
प्रभो, तुम्हें भी सिन्धु पार से
सीता का सन्देश न भूले।

-मैथिलीशरण गुप्त
  [स्वदेश संगीत ] 

Back
 
Post Comment
 
Type a word in English and press SPACE to transliterate.
Press CTRL+G to switch between English and the Hindi language.
 

सब्स्क्रिप्शन

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश