नागरी प्रचार देश उन्नति का द्वार है। - गोपाललाल खत्री।
 

गीत

गीतों में प्राय: श्रृंगार-रस, वीर-रस व करुण-रस की प्रधानता देखने को मिलती है। इन्हीं रसों को आधारमूल रखते हुए अधिकतर गीतों ने अपनी भाव-भूमि का चयन किया है। गीत अभिव्यक्ति के लिए विशेष मायने रखते हैं जिसे समझने के लिए स्वर्गीय पं नरेन्द्र शर्मा के शब्द उचित होंगे, "गद्य जब असमर्थ हो जाता है तो कविता जन्म लेती है। कविता जब असमर्थ हो जाती है तो गीत जन्म लेता है।" आइए, विभिन्न रसों में पिरोए हुए गीतों का मिलके आनंद लें।

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मैं हार गया हूं - भगवतीचरण वर्मा

भगवतीचरण वर्मा, मैं हार गया हूं

 
मैं पावन हूँ अपने आंसू के नीर से | गीत  - गोपाल सिंह नेपाली | Gopal Singh Nepali

तुम पार तरो गंगा-यमुना के तीर से 
मैं पावन हूँ अपने आंसू के नीर से

 
पीड़ा का वरदान - विष्णुदत्त 'विकल

क्यों जग के वाक्-प्रहारों से हम तज दें अपनी राह प्रिये! 

 
क्या होगा | गीत - कुसुम सिनहा

सपनों ने सन्यास लिया तो 
पगली आंखों का क्या होगा! 

आंसू से भीगी अखियां भी 
सपनों में मुस्काने लगतीं। 
कितनी ही ददर्दीली श्वासें 
प्रीत जगे तो गाने लगती।
प्रीत हुई बैरागिन 
भोली श्वासों का क्या होगा!

 

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