जब हम अपना जीवन, जननी हिंदी, मातृभाषा हिंदी के लिये समर्पण कर दे तब हम किसी के प्रेमी कहे जा सकते हैं। - सेठ गोविंददास।
 
बात हम मस्ती में ऐसी कह गए | ग़ज़ल (काव्य)       
Author:डा. राणा प्रताप सिंह गन्नौरी 'राणा'

बात हम मस्ती में ऐसी कह गए,
होश वाले भी ठगे से रह गए।

कष्ट जीवन में हमारे थे बहुत,
हम मगर हँसते हुए सब सह गए।

बढ़ गए, आगे बढ़े जिन के कदम,
रह गए जो लोग पीछे रह गए।

लाख चाहा था कि आँखों में रहें,
किंतु विह्वल अश्रु फिर भी बह गए।

- डा राणा प्रतापसिंह गन्नौरी 'राणा'

Back
 
 
Post Comment
 
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश