हिंदी चिरकाल से ऐसी भाषा रही है जिसने मात्र विदेशी होने के कारण किसी शब्द का बहिष्कार नहीं किया। - राजेंद्रप्रसाद।
 
शुभ दीपावली  (कथा-कहानी)       
Author:अनिल चन्द्रा | Anil Chandra

जितेन्द्र राणा को जब टेलीफोन पर बताया गया कि उसका बेटा गुवाहाटी में बीमार है ओर उसके जीने की कोई आशा नहीं तो उसकी समझ में नहीं आया कि वह कहाँ से इतना पैसा जुटाए कि वह और उसकी पली वहाँ जा सके। जितेन्द्र राणा ने जीवन-भर ट्रक ड्राइवर के रूप में काम किया था, लेकिन वह कभी कोई बचत नहीं कर पाया था। अपने अहंकार को वश में करते हुए उसने अपने कुछ निकटतम सम्बंधियों को सहायता के लिए कहा, लेकिन उनकी भी हालत उससे कुछ अच्छी नहीं थी। सो लज्जित और निराश होकर जितेन्द्र राणा अपने घर से एक किलोमीटर दूर एक टेलीफोन बूथ पर गया और उसने मालिक से कहा, ''मेरा बेटा काफी बीमार है और मेरे पास नकद देने के लिए पैसा नहीं है। क्या आप मुझ पर भरोसा करके मुझे गुवाहाटी फोन करने देंगे? मैं इसके पैसे बाद में दे दूंगा।''


''फोन उठाओ और जितनी देर तक जरूरत हो फोन करो'' जवाब मिला। वह बूथ के अन्दर जाने लगा कि किसी की आवाज ने उसे रोका, ''कहीं आप जितेन्द्र राणा तो नहीं?'' कोई अजनबी एक कार से बाहर आ रहा था। वह युवक जाना-पहचाना नहीं लगा। जितेन्द्र राणा उसकी ओर विस्मय की दृष्टि से देखता हुआ बोला, ''जी हाँ, मैं जितेन्द्र राणा ही हूँ।''


"आप का बेटा और मैं एक साथ पले-बढ़े हैं। तब वह मेरा सबसे अच्छा दोस्त था। जब मैं वहाँ से दूसरे शहर में चला गया, मुझे पता नहीं चल सका कि उसका क्या हुआ!'' वह एक क्षण रुका और फिर कहने लगा, ''अभी-अभी मैंने आप को कहते सुना है कि वह बीमार है। क्या यह ठीक है?''

'हमने सुना है कि वह काफी बीमार है। मैं वहाँ टेलीफोन करके अपनी पत्नी को उसके पास भेजने की व्यवस्था कर रहा हूँ।'' 

फिर उसने शिष्टाचार वश जोड़ा, ''शुभ दीपावली। कितना अच्छा होता अगर तुम्हारे पिता जी जिन्दा होते!'' 

बूढ़ा जितेन्द्र राणा टेलीफोन बूथ के अंदर गया और अपने भाई को टेलीफोन करके यह सूचना दी कि वह या उसकी पत्नी जितनी जल्दी हो सके वहाँ पहुँचेंगे।

जितेन्द्र के चेहरे पर उदासी साफ झलक उठी जब उसने टेलीफोन बूथ के मालिक  को विश्वास दिलाया कि वह जितनी जल्दी हो सके टेलीफोन करने के पैसे चुका देगा।

"इस कॉल के पैसे दिये जा चुके हैं।"

वह कार वाला आदमी था न, जिसके साथ तुम्हारा बेटा बचपन में खेला करता था, उसने मुझे दो सौ रुपए दे दिए और कहा कि फोन करने के पैसे काट कर मैं बाकी तुम्हें दे दूँ। वह तुम्हारे लिए यह लिफ़ाफ़ा भी रख गया है।'' 

बूढ़े ने हड़बड़ा कर लिफ़ाफ़ा खोला और उसमें से दो कागज निकाले। एक पर लिखा था, ''आप पहले ट्रक ड्राइवर हैं जिसके साथ मैंने यात्रा की है, जिसके बारे में मेरे पिता को यह भरोसा था कि मैं उसके साथ जा सकता हूँ। तब मैं मुश्किल से पाँच साल का था मुझे याद है, आप ने मुझे एक लालीपॉप ले दिया था।''

दूसरा कागज आकार में काफी छोटा था यह एक चैक था जिसके साथ एक संदेश संलग्न था - ''चैक में वह रकम भरें जो आपके और आपकी पत्नी के गुवाहाटी जाने के लिए काफी हो। इस टेलीफोन बूथ के पास में इलाहाबाद बैंक है। वहाँ जाएं और रूपया निकलवाएँ। और, अपने बेटे, मेरे दोस्त, को मेरी तरफ से एक लालीपाँप दें। शुभ दीपावली।



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