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 ज़िंदगी तुझे सलाम | Hindi poem by Dr Pushpa Bhardwaj-Wood
किसी साहित्य की नकल पर कोई साहित्य तैयार नहीं होता। - सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'।
 
ज़िंदगी तुझे सलाम (काव्य)       
Author:डॉ पुष्पा भारद्वाज-वुड | न्यूज़ीलैंड

सोचा था अभी तो बहुत कुछ करना बाक़ी है
अभी तो घर भी नहीं बसाया
ना ही अभी किसी को अपना बनाया।

अभी तो किसी को यह भी नहीं बताया कि हमें भी किसी की तलाश है
ना ही अभी दूसरों को अपनाने की कला सीखी।

अभी तो अपने किए पर पछतावा करना आया नहीं
ना ही अभी अपनी ग़लतियों को सुधारने की अदा सीखी।

अब तक तो सिर्फ़ हमने अपनी ही उपलब्धियों पर जश्न मनाया है
किसी को अपने से भी आगे बढ़ते देख कर ख़ुशियाँ मनाने का जोश नहीं आया।

अभी तो बहुत कुछ करना बाक़ी है ज़िंदगी
मौत के बुलावे पर ध्यान देने का मौक़ा आया ही नहीं।

--डा॰ पुष्पा भारद्वाज-वुड

 

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