मैं असभ्य हूँ क्योंकि खुले नंगे पांवों चलता हूँ मैं असभ्य हूँ क्योंकि धूल की गोदी में पलता हूँ मैं असभ्य क्योंकि चीरकर धरती धान उगाता हूँ मैं असभ्य हूँ क्योंकि ढोल पर बहुत जोर से गाता
आप सभ्य हैं क्योंकि हवा में उड़ जाते हैं ऊपर आप सभ्य हैं क्योंकि आग बरसा देते हैं भू पर
आप सभ्य हैं क्योंकि धान सें भरी आपकी कोठी आप सभ्य हैं क्योंकि जोर से पढ़ पाते हैं पोथी आप सभ्य हैं क्योंकिं आपके कपड़े स्वयं बने हैं आप सभ्य हैं क्योंकि जबड़े खून सने हैं
आप बड़े चिंतित हैं मेरे पिछड़ेपन के मारे आप सोचते हैं कि सीखता यह भी ढंग हमारे मैं उतारना नहीं चाहता जाहिल अपने बाने धोती-कुरता बहुत जोर से लिपटाये हूँ याने!
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