हिंदी चिरकाल से ऐसी भाषा रही है जिसने मात्र विदेशी होने के कारण किसी शब्द का बहिष्कार नहीं किया। - राजेंद्रप्रसाद।
 
रामप्रसाद बिस्मिल का अंतिम पत्र
 
 
शहीद होने से एक दिन पूर्व रामप्रसाद बिस्मिल ने अपने एक मित्र को निम्न पत्र लिखा -"19 तारीख को जो कुछ होगा मैं उसके लिए सहर्ष तैयार हूँ।आत्मा अमर है जो मनुष्य की तरह वस्त्र धारण किया करती है।"यदि देश के हित मरना पड़े, मुझको सहस्रो बार भी।तो भी न मैं इस कष्ट को, निज ध्यान में लाऊं कभी।।हे ईश! भारतवर्ष में, शतवार मेरा जन्म हो।कारण सदा ही मृत्यु का, देशीय कारक कर्म हो।।मरते हैं बिस्मिल, रोशन, लाहिड़ी, अशफाक अत्याचार से।होंगे पैदा सैंकड़ों, उनके रूधिर की धार से।।उनके प्रबल उद्योग से, उद्धार होगा देश का।तब नाश होगा सर्वदा, दुख शोक के लव लेश का।।सब से मेरा नमस्कार कहिए,तुम्हारा बिस्मिल"रामप्रसाद बिस्मिल की शायरी, जो उन्होने कालकोठरी में लिखी या गाई थी, उसका एक-एक शब्द आज भी भारतीय जनमानस पर उतना ही असर रखता है जितना उन दिनो रखता था। इस शायरी का हर शब्द अमर है:सरफरोशी की तमन्ना, अब हमारे दिल में है।देखना है जोर कितना, बाजुए कातिल में है।।वक्त आने दे बता देंगे तुझे ऐ आसमांहम अभी से क्या बताएं, क्या हमारे दिल में है।। और:दिन खून के हमारे, यारो न भूल जानासूनी पड़ी कबर पे इक गुल खिलाते जाना।
 
 
 
 
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