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सत्य की महिमा - कबीर की वाणी
साँच बराबर तप नहीं, झूँठ बराबर पाप।
जाके हिरदे साँच है, ताके हिरदे आप॥
साँच बिना सुमिरन नहीं, भय बिन भक्ति न होय।
पारस में पड़दा रहै, कंचन किहि विधि होय॥
साँचे को साँचा मिलै, अधिका बढ़े सनेह॥
झूँठे को साँचा मिलै, तब ही टूटे नेह॥
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उपदेश : कबीर के दोहे
कबीर आप ठगाइये, और न ठगिये कोय।
आप ठगे सुख ऊपजै, और ठगे दुख होय॥
अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप।
अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप॥
जो तोकौ काँटा बुवै, ताहि बोवे फूल।
तोहि फूल को फूल है, वा को है तिरसूल॥
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प्रेम पर दोहे
प्रेम न बाड़ी ऊपजै, प्रेम न हाट बिकाय।
राजा-परजा जेहि रुचै, सीस देइ लै जाय॥
प्रेम-प्रेम सब कोइ कहै, प्रेम न चीन्हे कोय।
आठ पहर भीना रहे, प्रेम कहावै सोय॥
प्रीतम को पतियाँ लिखूँ, जो कहु होय विदेस ।
तन में, मन में, नैन में, ताको कहा सँदेश॥
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कबीर के दोहे | Kabir's Couplets
कबीर के दोहे सर्वाधिक प्रसिद्ध व लोकप्रिय हैं। हम कबीर के अधिक से अधिक दोहों को संकलित करने हेतु प्रयासरत हैं।
(1)
चाह मिटी, चिंता मिटी मनवा बेपरवाह।
जिसको कुछ नहीं चाहिए वह शहनशाह॥
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कबीर वाणी
माला फेरत जुग गया फिरा ना मन का फेर
कर का मनका छोड़ दे मन का मन का फेर
मन का मनका फेर ध्रुव ने फेरी माला
धरे चतुरभुज रूप मिला हरि मुरली वाला
कहते दास कबीर माला प्रलाद ने फेरी
धर नरसिंह का रूप बचाया अपना चेरो
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आया है किस काम को किया कौन सा काम
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कबीर की हिंदी ग़ज़ल
क्या कबीर हिंदी के पहले ग़ज़लकार थे? यदि कबीर की निम्न रचना को देखें तो कबीर ने निसंदेह ग़ज़ल कहीं है:
हमन है इश्क मस्ताना, हमन को होशियारी क्या ?
रहें आजाद या जग से, हमन दुनिया से यारी क्या ?
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कबीर भजन
उमरिया धोखे में खोये दियो रे।
धोखे में खोये दियो रे।
पांच बरस का भोला-भाला
बीस में जवान भयो।
तीस बरस में माया के कारण,
देश विदेश गयो। उमर सब ....
चालिस बरस अन्त अब लागे, बाढ़ै मोह गयो।
धन धाम पुत्र के कारण, निस दिन सोच भयो।।
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ऋतु फागुन नियरानी हो
ऋतु फागुन नियरानी हो,
कोई पिया से मिलावे ।
सोई सुदंर जाकों पिया को ध्यान है,
सोई पिया की मनमानी,
खेलत फाग अगं नहिं मोड़े,
सतगुरु से लिपटानी ।
इक इक सखियाँ खेल घर पहुँची,
इक इक कुल अरुझानी ।
इक इक नाम बिना बहकानी,
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कबीर की कुंडलियां
कबीर ने कुंडलियां भी कही हों इसका कहीं उल्लेख नहीं मिलता लेकिन कबीर की कुंडलियां भी प्रचलित हैं। ये कुंडलियां शायद उनके प्रशंसकों या उनके शिष्यों ने कबीर की साखियों को आधार बना लिखी हों। यदि आपके पास इसकी और जानकारी हो या आपने इसपर शोध किया हो तो कृपया जानकारी साझा करें।
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कबीर की साखियां | संकलन
कबीर की साखियां बहुत लोकप्रिय हैं। यह पृष्ठ कबीर का साखी संग्रह है।
साखी रचना की परंपरा का प्रारंभ गुरु गोरखनाथ तथा नामदेव के समय हुआ था। गोरखनाथ की जोगेश्वरी साखी काव्यरूप में उपलब्ध सबसे पहली 'साखी रचना मानी जाती है।
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