साहित्य की उन्नति के लिए सभाओं और पुस्तकालयों की अत्यंत आवश्यकता है। - महामहो. पं. सकलनारायण शर्मा।
कलमकार पर कुंडलियाँ (काव्य)  Click to print this content  
Author:राम औतार पंकज

कलमकार का है यही, गुण कर्त्तव्य पुनीत ।
सदा सृष्टि-कल्याण हित, रचे नीति के गीत ।।
रचे नीति के गीत, स्वस्थ मन-भ्रान्ति न लाये ।
जगा विश्व बन्धुत्व, न्याय हित क्रान्ति जगाये ।।
'पंकज' हो निष्पक्ष, पक्षधर सदाचार का।
पूजेगा पद-चिह्न, जगत उस कलमकार का।।

कवि होता चिन्तक सजग, साधक सिद्ध सुजान ।
दे सबको सद्भावना, शुभ-प्रद नूतन ज्ञान ।।
शुभ-प्रद नूतन ज्ञान, शुद्ध मति का गुण आगर ।
शिवं - भाव परिपूर्ण, भरे गागर में सागर ।।
कह 'पंकज' कवि हृदय, ज्ञान द्युति का रवि होता।
युग-द्रष्टा निष्पक्ष, श्रेष्ठ सच्चा कवि होता।।

लड़ना - भिड़ना, काटना, होता जंगल खेल ।
कूटनीति में भी चले, कलुषित छल-बल मेल ।।
कलुषित छल-बल मेल, न लक्षण कलमकार के।
सगुणोपासक सूर, कबीरा निरंकार के ।।
'पंकज' मानस नीति, सत्य सुन्दर शिव गढ़ना।।
बहुत दुखद है बन्धु, मनीषी होकर लड़ना ।।

- राम औतार 'पंकज'

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