कलमकार का है यही, गुण कर्त्तव्य पुनीत । सदा सृष्टि-कल्याण हित, रचे नीति के गीत ।। रचे नीति के गीत, स्वस्थ मन-भ्रान्ति न लाये । जगा विश्व बन्धुत्व, न्याय हित क्रान्ति जगाये ।। 'पंकज' हो निष्पक्ष, पक्षधर सदाचार का। पूजेगा पद-चिह्न, जगत उस कलमकार का।।
कवि होता चिन्तक सजग, साधक सिद्ध सुजान । दे सबको सद्भावना, शुभ-प्रद नूतन ज्ञान ।। शुभ-प्रद नूतन ज्ञान, शुद्ध मति का गुण आगर । शिवं - भाव परिपूर्ण, भरे गागर में सागर ।। कह 'पंकज' कवि हृदय, ज्ञान द्युति का रवि होता। युग-द्रष्टा निष्पक्ष, श्रेष्ठ सच्चा कवि होता।।
लड़ना - भिड़ना, काटना, होता जंगल खेल । कूटनीति में भी चले, कलुषित छल-बल मेल ।। कलुषित छल-बल मेल, न लक्षण कलमकार के। सगुणोपासक सूर, कबीरा निरंकार के ।। 'पंकज' मानस नीति, सत्य सुन्दर शिव गढ़ना।। बहुत दुखद है बन्धु, मनीषी होकर लड़ना ।।
- राम औतार 'पंकज' |