साहित्य की उन्नति के लिए सभाओं और पुस्तकालयों की अत्यंत आवश्यकता है। - महामहो. पं. सकलनारायण शर्मा।
नया साल आए (काव्य)  Click to print this content  
Author:दुष्यंत कुमार

नया साल आए, नया दर्द आए ।
मैं डरता नहीं हूँ, हवा सर्द आए,

रहे हड्डियों में ज़रा भी जो ताकत ।
रहे पथ सलामत, रहे पथ सलामत ।
बड़ी गर्द आए, पड़ी गर्द आए ।।

मुझे यह पता है, कि हर प्यार है गम

इसी से नहीं दुःख या है तो बहुत कम
हरेक दर्द गाना, हरेक दर्द प्यार
हरेक विघ्न-मक्खी शहद की भनक
सलामत रहे पंथ भी, दर्द भी
जहाँ चार बर्तन हैं होगी खनक!

नया साल आए, अंधेरा बढ़े,
दर्द तेरा बढ़े, दर्द मेरा बढ़े,
उम्र घटती रहे यूँ ही इस दर्द की
रास्तों पर अंधेरा, सवेरा बढ़े ।

हाँ, नया साल आए उजाला मिले ।
भूला-भटका हुआ साथ वाला मिले
उम्र की ट्रेन में ज़िंदगी का सफर
कट सके मौज से वह रिसाला मिले..।

-दुष्यंत कुमार

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