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जो दीप बुझ गए हैंउनका दु:ख सहना क्या,जो दीप, जलाओगे तुमउनका कहना क्या,
सुधि की हथेलियों परचिंतित माथा न धरो,जो दीप जल रहे हैंअब उनकी बात करो ।
-दुष्यंत कुमार
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