हमारी हिंदी भाषा का साहित्य किसी भी दूसरी भारतीय भाषा से किसी अंश से कम नहीं है। - (रायबहादुर) रामरणविजय सिंह।
ख्याली जलेबी  (बाल-साहित्य )  Click to print this content  
Author:भारत-दर्शन संकलन

एक बार एक बुढ़िया किसी गाड़ी से टकरा गई। वह बेहोश होकर गिर पड़ी। लोगों की भीड़ ने उसे घेर लिया। कोई बेहोश बुढ़िया को हवा करने लगा तो कोई सिर सहलाने लगा।

गाड़ीवाला टक्कर मारते ही भाग गया था। वहीं शेखचिल्ली जनाब भी खड़े थे। एक आदमी बोला, ‘जल्दी से बुढ़िया को अस्पताल ले चलो।' दूसरे ने कहा, ‘हाँ', ताँगा लाओ और इसे अस्पताल पहुँचाओ।'

‘हमें इसे यहीं पर होश में लाना चाहिए।'

'भई, कोई तो पानी ले लाओ।' तीसरा बोला।

‘पानी के छींटे देने पर यह होश में आ जाएगी।'

'हाँ, हमें इसकी जिंदगी बचानी चाहिए।'

'लेकिन यह तो होश में नहीं आ रही। इसे अस्पताल ही ले चलो। वहीं होश में आएगी।'

वहीं खड़ा शेखचिल्ली बोला, ‘इसे होश में लाने का तरीका तो मैं बता सकता हूँ।'

‘बताओ भाई?' कई लोग एक साथ बोले।

‘इसके लिए गर्म-गर्म जलेबियाँ लाओ। जलेबियों की खुशबू इसे सुँघाओ और फिर इसके मुँह में डाल दो। जलेबियाँ इसे बड़ा फायदा करेंगी।' शेखचिल्ली ने बताया।

लोगों को शेखचिल्ली की बात मूर्खतापूर्ण लगी और लोगों ने उसे अनसुना कर दिया।

शेखचिल्ली की बात बुढ़िया के कानों में पड़ चुकी थी।

बुढ़िया बेहोशी का बहाना किए पड़ी थी। शेखचिल्ली की बात को अनसुना होते देख बुढ़िया बोल उठी, ‘अरे भाइयों, इसकी भी तो सुनो! देखो यह लड़का क्या कह रहा है।'

लोग चौंक पड़े। उन्होंने बुढ़िया को बुरा-भला कहा और चल दिए। बहानेबाज़ बुढ़िया भी चुपचाप उठकर जाने को मजबूर हो गई।

[भारत-दर्शन संकलन]

 

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