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कहानियां
कहानियों के अंतर्गत यहां आप हिंदी की नई-पुरानी कहानियां पढ़ पाएंगे जिनमें कथाएं व लोक-कथाएं भी सम्मिलित रहेंगी। पढ़िए मुंशी प्रेमचंद, रबीन्द्रनाथ टैगोर, भीष्म साहनी, मोहन राकेश, चंद्रधर शर्मा गुलेरी, फणीश्वरनाथ रेणु, सुदर्शन, कमलेश्वर, विष्णु प्रभाकर, कृष्णा सोबती, यशपाल, अज्ञेय, निराला, महादेवी वर्मा व लियो टोल्स्टोय की कहानियां।Article Under This Catagory
होली का उपहार - मुंशी प्रेमचंद | Munshi Premchand |
मैकूलाल अमरकान्त के घर शतरंज खेलने आये, तो देखा, वह कहीं बाहर जाने की तैयारी कर रहे हैं। पूछा--कहीं बाहर की तैयारी कर रहे हो क्या भाई? फुरसत हो, तो आओ, आज दो-चार बाजियाँ हो जाएँ। |
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महारानी का जीवन - डॉ माधवी श्रीवास्तवा | न्यूज़ीलैंड |
राम आज अत्यधिक दुःखी थे। उनका मन आज किसी कार्य में स्थिर नहीं हो रहा था। बार-बार सीता की छवि उन्हें विचलित कर रही थी। वह पुनः पञ्चवटी जाना चाहते थे, कदाचित यह सोच कर कि सीता वहाँ मिल जाये यदि सीता न भी मिली तो सीता की स्मृतियाँ तो वहाँ अवश्य ही होंगी। राज-काम से निवृत्त होकर राम अपने कक्ष में वापस आ जाते हैं। प्रासाद में रहते हुए भी उन्होंने राजमहल के सुखों से अपने आप को वंचित कर रखा था, यह सोचकर कि मेरी सीता भी तो अब अभाव पूर्ण जीवन जी रही होगी। पता नहीं वह क्या खाती होगी...? कहाँ सोती होगी...? इसी चिंता में आज उन्हें भूख भी नहीं लग रही थी। राजसी भोजन का तो परित्याग उन्होंने पहले ही कर दिया था। आज उन्होंने कन्द-मूल भी ग्रहण नहीं किये थे। जिससे माता कौशल्या अत्यंत चिंतित हो गयी थी। वह राम से मिलने उनके कक्ष की ओर जाती हैं, परन्तु मार्ग में ही सिपाही उन्हें रोक देते हैं। |
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होली | कहानी - सुभद्रा कुमारी |
"कल होली है।" |
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पत्रकार - विश्वंभरनाथ शर्मा कौशिक |
दोपहर का समय था। 'लाउड स्पीकर' नामक अंग्रेजी दैनिक समाचार पत्र के दफ्तर में काफी चहल-पहल थी। यह एक प्रमुख तथा लोकप्रिय पत्र था। |
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हृदय की आँखें - हरिवंश राय बच्चन | Harivansh Rai Bachchan |
उस दिन दर्पण पर कुछ अधिक समय तक दृष्टि जमी रह गई। ऊपरी होंठों पर कुछ श्यामता का आभास हुआ । मुझे कुछ शर्म सी लगी। मैंने अपने मन में प्रश्न किया-- क्या में यौवनावस्था में प्रवेश कर रहा हूँ? फिर तो जब कभी मैं दर्पण के सम्मुख जाता, तो पहले मेरी दृष्टि उसी श्यामता पर जाती, जिसने पहले पहल मुझे यौवनागमन की मूक सूचना दी थी। समय बीतता गया। वह श्यामता और अधिक घनीभूत होती गई। |
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चूहे की कहानी - भारत-दर्शन संकलन | Collections |
एक विशाल घने जंगल में एक महात्मा की कुटिया थी और उसमें एक चूहा रहा करता था। महात्मा उसे बहुत प्यार करते थे। जब पूजा से निवृत हो वे अपनी मृगछाला पर आ बैठते तो चूहा दौड़ता हुआ उनके पास आ पहुँचता। कभी उनकी टाँगो पर दौड़ता, कभी कूद कर उनके कंधों पर चढ़ बैठता। महात्मा सारे वक्त हँसते रहते। धीरे-धीरे उन्होंने चूहे को मनुष्यों की तरह बोलना भी सिखा दिया । |
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