उर्दू जबान ब्रजभाषा से निकली है। - मुहम्मद हुसैन 'आजाद'।
काव्य
जब ह्रदय अहं की भावना का परित्याग करके विशुद्ध अनुभूति मात्र रह जाता है, तब वह मुक्त हृदय हो जाता है। हृदय की इस मुक्ति की साधना के लिए मनुष्य की वाणी जो शब्द विधान करती आई है उसे काव्य कहते हैं। कविता मनुष्य को स्वार्थ सम्बन्धों के संकुचित घेरे से ऊपर उठाती है और शेष सृष्टि से रागात्मक संबंध जोड़ने में सहायक होती है। काव्य की अनेक परिभाषाएं दी गई हैं। ये परिभाषाएं आधुनिक हिंदी काव्य के लिए भी सही सिद्ध होती हैं। काव्य सिद्ध चित्त को अलौकिक आनंदानुभूति कराता है तो हृदय के तार झंकृत हो उठते हैं। काव्य में सत्यं शिवं सुंदरम् की भावना भी निहित होती है। जिस काव्य में यह सब कुछ पाया जाता है वह उत्तम काव्य माना जाता है।

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मलूकदास के दोहे - मलूकदास

भेष फकीरी जे करें, मन नहिं आवै हाथ ।
दिल फकीर जे हो रहे, साहेब तिनके साथ ॥
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हिंदी मातु हमारी - प्रो. मनोरंजन - भारत-दर्शन संकलन | Collections

प्रो. मनोरंजन जी, एम. ए, काशी विश्वविद्यालय की यह रचना लाहौर से प्रकाशित 'खरी बात' में 1935 में प्रकाशित हुई थी।
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भगत सिंह को पसंद थी ये ग़ज़ल - भारत-दर्शन संकलन | Collections

उन्हें ये फिक्र है हर दम नई तर्ज़-ए-जफ़ा क्या है
हमें ये शौक़ है देखें सितम की इंतिहा क्या है
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दोहे और सोरठे  - भारतेन्दु हरिश्चन्द्र | Bharatendu Harishchandra

है इत लाल कपोल ब्रत कठिन प्रेम की चाल।
मुख सों आह न भाखिहैं निज सुख करो हलाल॥
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काली माता - स्वामी विवेकानंद

छिप गये तारे गगन के,
बादलों पर चढ़े बादल,
काँपकर गहरा अंधेरा,
गरजते तूफान में, शत
लक्ष पागल प्राण छूटे
जल्द कारागार से--द्रुम
जड़ समेत उखाड़कर, हर
बला पथ की साफ़ करके ।

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कब लोगे अवतार हमारी धरती पर - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

फैला है अंधकार हमारी धरती पर
हर जन है लाचार हमारी धरती पर
हे देव! धरा है पूछ रही...
कब लोगे अवतार हमारी धरती पर !

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मौन ओढ़े हैं सभी | राजगोपाल सिंह का गीत - राजगोपाल सिंह

मौन ओढ़े हैं सभी तैयारियाँ होंगी ज़रूर
राख के नीचे दबी चिंगारियाँ होंगी ज़रूर
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ज्ञान का पाठ  - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

डॉ० कलाम को समर्पित....
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राकेश पांडेय की कवितायें - राकेश पांडेय

दिल्ली में सावन
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हिन्दी के सुमनों के प्रति पत्र  - सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' | Suryakant Tripathi 'Nirala'

मैं जीर्ण-साज बहु छिद्र आज,
तुम सुदल सुरंग सुवास सुमन,
मैं हूँ केवल पतदल-आसन,
तुम सहज बिराजे महाराज।
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भगतसिंह पर लिखी कविताएं - भारत-दर्शन संकलन | Collections

इन पृष्ठों में भगतसिंह पर लिखी काव्य रचनाओं को संकलित करने का प्रयास किया जा रहा है। विश्वास है आपको सामग्री पठनीय लगेगी।
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हास्य दोहे | काका हाथरसी - काका हाथरसी | Kaka Hathrasi

अँग्रेजी से प्यार है, हिंदी से परहेज,
ऊपर से हैं इंडियन, भीतर से अँगरेज
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मैं और कुछ नहीं कर सकता था  - विष्णु नागर

मैं क्या कर सकता था
किसी का बेटा मर गया था
सांत्वना के दो शब्द कह सकता था
किसी ने कहा बाबू जी मेरा घर बाढ़ में बह गया
तो उस पर यकीन करके उसे दस रुपये दे सकता था
किसी अंधे को सड़क पार करा सकता था
रिक्शावाले से भाव न करके उसे मुंहमांगा दाम दे सकता था
अपनी कामवाली को दो महीने का एडवांस दे सकता था
दफ्तर के चपरासी की ग़लती माफ़ कर सकता था
अमेरिका के खिलाफ नारे लगा सकता था
वामपंथ में अपना भरोसा फिर से ज़ाहिर कर सकता था
वक्तव्य पर दस्तख़त कर सकता था
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सोचेगी कभी भाषा - दिविक रमेश

जिसे रौंदा है जब चाहा तब
जिसका किया है दुरूपयोग, सबसे ज़्यादा।
जब चाहा तब
निकाल फेंका जिसे बाहर।
कितना तो जुतियाया है जिसे
प्रकोप में, प्रलोभ में
वह तुम्हीं हो न भाषा।
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चाहता हूँ देश की.... - रामावतार त्यागी | Ramavtar Tyagi

मन समर्पित, तन समर्पित
और यह जीवन समर्पित
चाहता हूँ देश की धरती तुझे कुछ और भी दूं
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पुरखों की पुण्य धरोहर - रामावतार त्यागी | Ramavtar Tyagi

जो फूल चमन पर संकट देख रहा सोता
मिट्टी उस को जीवन-भर क्षमा नहीं करती ।
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हिंदी जन की बोली है - गिरिजाकुमार माथुर | Girija Kumar Mathur

एक डोर में सबको जो है बाँधती
वह हिंदी है,
हर भाषा को सगी बहन जो मानती
वह हिंदी है।
भरी-पूरी हों सभी बोलियां
यही कामना हिंदी है,
गहरी हो पहचान आपसी
यही साधना हिंदी है,
सौत विदेशी रहे न रानी
यही भावना हिंदी है।
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रंग दे बसंती चोला गीत का इतिहास - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

'रंग दे बसंती चोला' अत्यंत लोकप्रिय देश-भक्ति गीत है। यह गीत किसने रचा? इसके बारे में बहुत से लोगों की जिज्ञासा है और वे समय-समय पर यह प्रश्न पूछते रहते हैं।
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मातृ-मन्दिर में - सुभद्रा कुमारी

वीणा बज-सी उठी, खुल गये नेत्र
और कुछ आया ध्यान।
मुड़ने की थी देर, दिख पड़ा
उत्सव का प्यारा सामान॥
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दिन अच्छे आने वाले हैं - गयाप्रसाद शुक्ल सनेही

जब दुख पर दुख हों झेल रहे, बैरी हों पापड़ बेल रहे,
हों दिन ज्यों-त्यों कर ढेल रहे, बाकी न किसी से मेल रहे,
तो अपने जी में यह समझो,
दिन अच्छे आने वाले हैं ।
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हौसला - देवेन्द्र कुमार मिश्रा

कागज की नाव बही
और डूब गई
बात डूबने की नहीं
उसके हौसले की है
और कौन मरा कितना जिया
सवाल ये नहीं
बात तो हौसले की है
बात तो जीने की है
कितना जिया ये बात बेमानी है
किस तरह जिया
कागज़ी नाव का हौसला देखिये
डूबना नहीं।
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नीति के दोहे - कबीर, तुलसी व रहीम

कबीर के नीति दोहे

साई इतना दीजिए, जामे कुटुम समाय ।
मैं भी भूखा ना रहूँ साधु न भूखा जाय ॥
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हिंदी हम सबकी परिभाषा - डा० लक्ष्मीमल्ल सिंघवी

कोटि-कोटि कंठों की भाषा,
जनगण की मुखरित अभिलाषा,
हिंदी है पहचान हमारी,
हिंदी हम सबकी परिभाषा।
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अनुपम भाषा है हिन्दी - श्रीनिवास

अनुपम भाषा है हिन्दी
बढती आशा है हिन्दी !
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किसी के दुख में .... | ग़ज़ल  - ज्ञानप्रकाश विवेक | Gyanprakash Vivek

किसी के दुख में रो उट्ठूं कुछ ऐसी तर्जुमानी दे
मुझे सपने न दे बेशक, मेरी आंखों को पानी दे
...

कबीर की हिंदी ग़ज़ल - कबीरदास | Kabirdas

क्या कबीर हिंदी के पहले ग़ज़लकार थे? यदि कबीर की निम्न रचना को देखें तो कबीर ने निसंदेह ग़ज़ल कहीं है:
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कबीर दोहे -3  - कबीरदास | Kabirdas

(41)
गुरु गोबिंद दोऊ खड़े, का के लागूं पाय।
बलिहारी गुरु आपणे, गोबिंद दियो मिलाय॥

(42)
गुरु कीजिए जानि के, पानी पीजै छानि ।
बिना विचारे गुरु करे, परे चौरासी खानि॥

(43)
सतगुरू की महिमा अनंत, अनंत किया उपकार।
लोचन अनंत उघाडिया, अनंत दिखावणहार॥

(44)
गुरु किया है देह का, सतगुरु चीन्हा नाहिं ।
भवसागर के जाल में, फिर फिर गोता खाहि॥

(45)
शब्द गुरु का शब्द है, काया का गुरु काय।
भक्ति करै नित शब्द की, सत्गुरु यौं समुझाय॥

(46)
बलिहारी गुर आपणैं, द्यौंहाडी कै बार।
जिनि मानिष तैं देवता, करत न लागी बार।।

(47)
कबीरा ते नर अन्ध है, गुरु को कहते और ।
हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रुठै नहीं ठौर ॥

(48)
जो गुरु ते भ्रम न मिटे, भ्रान्ति न जिसका जाय।
सो गुरु झूठा जानिये, त्यागत देर न लाय॥

(49)
यह तन विषय की बेलरी, गुरु अमृत की खान।
सीस दिये जो गुरु मिलै, तो भी सस्ता जान॥

(50)
गुरु लोभ शिष लालची, दोनों खेले दाँव।
दोनों बूड़े बापुरे, चढ़ि पाथर की नाँव॥


गुरू महिमा पर कबीर दोहे  (Kabir Dohe on Guru)
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एक भाव आह्लाद हो ! - डॉ० इंद्रराज बैद 'अधीर'

थकी-हारी, मनमारी, सरकारी राज भाषा है,
बड़ी दीन, पराधीन बिचारी स्वराज भाषा है ।
किसी के इंगितों पर डोलती यह ताज भाषा है,
जिस तरह चाहो, करो, हिन्दी तुम्हारी राजभाषा है ।
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मैं अपनी ज़िन्दगी से | ग़ज़ल - कृष्ण सुकुमार | Krishna Sukumar

मैं अपनी ज़िन्दगी से रूबरू यूँ पेश आता हूँ
ग़मों से गुफ़्तगू करता हूँ लेकिन मुस्कुराता हूँ
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भगत सिंह - गीत - भारत-दर्शन संकलन | Collections

फांसी का झूला झूल गया मर्दाना भगत सिंह ।
दुनियां को सबक दे गया मस्ताना भगत सिंह ।।
फांसी का झूला......
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शहीद भगत सिंह - भारत-दर्शन संकलन | Collections

भारत के लिये तू हुआ बलिदान भगत सिंह ।
था तुझको मुल्को-कौम का अभिमान भगत सिंह ।।
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भरोसा इस क़दर मैंने | ग़ज़ल - कृष्ण सुकुमार | Krishna Sukumar

भरोसा इस क़दर मैंने तुम्हारे प्यार पर रक्खा
शरारों पर चला बेख़ौफ़, सर तलवार पर रक्खा
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हिन्दी भारत की भाषा - श्रीमती रेवती

भाषा हो या हो राजनीति अब और गुलामी सहय नहीं,
बलिदानों का अपमान सहन करना कोई औदार्य नहीं ।
रवि-रश्मि अपहरण करने को मत बढें किसी के क्रूर हाथ
इन मुसकाते जल-जातों को यह सूर्य ग्रहण स्वीकार्य नहीं ।
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मैं दिल्ली हूँ | पाँच - रामावतार त्यागी | Ramavtar Tyagi

प्राणों से हाथ पड़ा धोना, मेरे कितने ही लालों को ।
बच्चों के प्राणों को हरते, देखा शैतानी भालों को ।।
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मक़सद - राजगोपाल सिंह

उनका मक़सद था
आवाज़ को दबाना
अग्नि को बुझाना
सुगंध को क़ैद करना
...

हमारी सभ्यता - मैथिलीशरण गुप्त | Mathilishran Gupt

शैशव-दशा में देश प्राय: जिस समय सब व्याप्त थे,
निःशेष विषयों में तभी हम प्रौढ़ता को प्राप्त थे ।
संसार को पहले हमीं ने ज्ञान-भिक्षा दान की,
आचार की, व्यवहार की, व्यापार की, विज्ञान की ।। ४५ ।।
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मेरी मातृ भाषा हिंदी  - सुनीता बहल

मेरी मातृ भाषा है हिंदी,
जिसके माथे पर सुशोभित है बिंदी।  
देश की है यह सिरमौर,
अंग्रेजी का न चलता इस पर जोर। 
विश्वव्यापी भाषा है चाहे अंग्रेजी,
हिंदी अपनेपन का सुख देती।
मेरी मातृ भाषा है हिंदी,
जिसके माथे पर सुशोभित है बिंदी।
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आजकल हम लोग ... | ग़ज़ल - राजगोपाल सिंह

आजकल हम लोग बच्चों की तरह लड़ने लगे
चाबियों वाले खिलौनों की तरह लड़ने लगे
...

आओ ! आओ ! भारतवासी । - बाबू जगन्नाथ

आओ ! आओ ! भारतवासी ।
क्या बंगाली ! क्या मदरासी ! ॥
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हिंदी-प्रेम  - काका हाथरसी | Kaka Hathrasi

हिंदी-हिंदू-हिंद का, जिनकी रग में रक्त
सत्ता पाकर हो गए, अँगरेज़ी के भक्त
अँगरेज़ी के भक्त, कहाँ तक करें बड़ाई
मुँह पर हिंदी-प्रेम, ह्रदय में अँगरेज़ी छाई
शुभ चिंतक श्रीमान, राष्ट्रभाषा के सच्चे
‘कानवेण्ट' में दाख़िल करा दिए हैं बच्चे
...

हिन्दी गान  -  महेश श्रीवास्तव

भाषा संस्कृति प्राण देश के इनके रहते राष्ट्र रहेगा।
हिन्दी का जय घोष गुँजाकर भारत माँ का मान बढ़ेगा।।

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जयरामजी की  - प्रदीप मिश्र

जयरामजी की


सुना जयरामजी की
और कान में जमा हुआ बर्फ़
हृदय की सूखती हुई नदी में
पिघलकर बहने लगा

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उजड़ा चमन सा वतन देखता हूँ - उत्कर्ष त्रिपाठी

न तन देखता हूँ , न मन देखता हूँ
उजड़ा चमन सा वतन देखता हूँ।

दिखते नहीं जहाँ में; कुछ करने वाले ,
बहुतों को कहते कथन देखता हूँ
ईमान यहाँ पर पुरस्कृत न होता,
उनका तो सिर्फ दमन देखता हूँ
न तन देखता हूँ,न मन देखता हूँ
उजड़ा चमन सा वतन देखता हूँ।
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बीस साल बाद - सुदामा पांडेय धूमिल


मेरे चेहरे में वे आँखें लौट आयी हैं
जिनसे मैंने पहली बार जंगल देखा है :
हरे रंग का एक ठोस सैलाब जिसमें सभी पेड़ डूब गए हैं।
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बचकर रहना इस दुनिया के लोगों की परछाई से - विजय कुमार सिंघल

बचकर रहना इस दुनिया के लोगों की परछाई से
इस दुनिया के लोग बना लेते हैं परबत राई से।
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जंगल-जंगल ढूँढ रहा है | ग़ज़ल - विजय कुमार सिंघल

जंगल-जंगल ढूँढ रहा है मृग अपनी कस्तूरी को
कितना मुश्किल है तय करना खुद से खुद की दूरी को
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नहीं कुछ भी बताना चाहता है | ग़ज़ल - डॉ शम्भुनाथ तिवारी

नहीं कुछ भी बताना चाहता है
भला वह क्या छुपाना चाहता है

तिज़ारत की है जिसने आँसुओं की
वही ख़ुद मुस्कुराना चाहता है
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परिंदे की बेज़ुबानी - डॉ शम्भुनाथ तिवारी

बड़ी ग़मनाक दिल छूती परिंदे की कहानी है!
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भिखारी| हास्य कविता - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

एक भिखारी दुखियारा
भूखा, प्यासा
भीख मांगता
फिरता मारा-मारा!
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