देशभाषा की उन्नति से ही देशोन्नति होती है। - सुधाकर द्विवेदी।
कविताएं
देश-भक्ति की कविताएं पढ़ें। अंतरजाल पर हिंदी दोहे, कविता, ग़ज़ल, गीत क्षणिकाएं व अन्य हिंदी काव्य पढ़ें। इस पृष्ठ के अंतर्गत विभिन्न हिंदी कवियों का काव्य - कविता, गीत, दोहे, हिंदी ग़ज़ल, क्षणिकाएं, हाइकू व हास्य-काव्य पढ़ें। हिंदी कवियों का काव्य संकलन आपको भेंट!

Articles Under this Category

राकेश पांडेय की कवितायें - राकेश पांडेय

दिल्ली में सावन
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हिंदी मातु हमारी - प्रो. मनोरंजन - भारत-दर्शन संकलन | Collections

प्रो. मनोरंजन जी, एम. ए, काशी विश्वविद्यालय की यह रचना लाहौर से प्रकाशित 'खरी बात' में 1935 में प्रकाशित हुई थी।
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ज्ञान का पाठ  - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

डॉ० कलाम को समर्पित....
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काली माता - स्वामी विवेकानंद

छिप गये तारे गगन के,
बादलों पर चढ़े बादल,
काँपकर गहरा अंधेरा,
गरजते तूफान में, शत
लक्ष पागल प्राण छूटे
जल्द कारागार से--द्रुम
जड़ समेत उखाड़कर, हर
बला पथ की साफ़ करके ।

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कब लोगे अवतार हमारी धरती पर - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

फैला है अंधकार हमारी धरती पर
हर जन है लाचार हमारी धरती पर
हे देव! धरा है पूछ रही...
कब लोगे अवतार हमारी धरती पर !

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भगतसिंह पर लिखी कविताएं - भारत-दर्शन संकलन | Collections

इन पृष्ठों में भगतसिंह पर लिखी काव्य रचनाओं को संकलित करने का प्रयास किया जा रहा है। विश्वास है आपको सामग्री पठनीय लगेगी।
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पुरखों की पुण्य धरोहर - रामावतार त्यागी | Ramavtar Tyagi

जो फूल चमन पर संकट देख रहा सोता
मिट्टी उस को जीवन-भर क्षमा नहीं करती ।
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हौसला - देवेन्द्र कुमार मिश्रा

कागज की नाव बही
और डूब गई
बात डूबने की नहीं
उसके हौसले की है
और कौन मरा कितना जिया
सवाल ये नहीं
बात तो हौसले की है
बात तो जीने की है
कितना जिया ये बात बेमानी है
किस तरह जिया
कागज़ी नाव का हौसला देखिये
डूबना नहीं।
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हिन्दी के सुमनों के प्रति पत्र  - सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' | Suryakant Tripathi 'Nirala'

मैं जीर्ण-साज बहु छिद्र आज,
तुम सुदल सुरंग सुवास सुमन,
मैं हूँ केवल पतदल-आसन,
तुम सहज बिराजे महाराज।
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हिंदी हम सबकी परिभाषा - डा० लक्ष्मीमल्ल सिंघवी

कोटि-कोटि कंठों की भाषा,
जनगण की मुखरित अभिलाषा,
हिंदी है पहचान हमारी,
हिंदी हम सबकी परिभाषा।
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सोचेगी कभी भाषा - दिविक रमेश

जिसे रौंदा है जब चाहा तब
जिसका किया है दुरूपयोग, सबसे ज़्यादा।
जब चाहा तब
निकाल फेंका जिसे बाहर।
कितना तो जुतियाया है जिसे
प्रकोप में, प्रलोभ में
वह तुम्हीं हो न भाषा।
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मैं और कुछ नहीं कर सकता था  - विष्णु नागर

मैं क्या कर सकता था
किसी का बेटा मर गया था
सांत्वना के दो शब्द कह सकता था
किसी ने कहा बाबू जी मेरा घर बाढ़ में बह गया
तो उस पर यकीन करके उसे दस रुपये दे सकता था
किसी अंधे को सड़क पार करा सकता था
रिक्शावाले से भाव न करके उसे मुंहमांगा दाम दे सकता था
अपनी कामवाली को दो महीने का एडवांस दे सकता था
दफ्तर के चपरासी की ग़लती माफ़ कर सकता था
अमेरिका के खिलाफ नारे लगा सकता था
वामपंथ में अपना भरोसा फिर से ज़ाहिर कर सकता था
वक्तव्य पर दस्तख़त कर सकता था
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मातृ-मन्दिर में - सुभद्रा कुमारी

वीणा बज-सी उठी, खुल गये नेत्र
और कुछ आया ध्यान।
मुड़ने की थी देर, दिख पड़ा
उत्सव का प्यारा सामान॥
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रंग दे बसंती चोला गीत का इतिहास - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

'रंग दे बसंती चोला' अत्यंत लोकप्रिय देश-भक्ति गीत है। यह गीत किसने रचा? इसके बारे में बहुत से लोगों की जिज्ञासा है और वे समय-समय पर यह प्रश्न पूछते रहते हैं।
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हिंदी जन की बोली है - गिरिजाकुमार माथुर | Girija Kumar Mathur

एक डोर में सबको जो है बाँधती
वह हिंदी है,
हर भाषा को सगी बहन जो मानती
वह हिंदी है।
भरी-पूरी हों सभी बोलियां
यही कामना हिंदी है,
गहरी हो पहचान आपसी
यही साधना हिंदी है,
सौत विदेशी रहे न रानी
यही भावना हिंदी है।
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अनुपम भाषा है हिन्दी - श्रीनिवास

अनुपम भाषा है हिन्दी
बढती आशा है हिन्दी !
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भगत सिंह - गीत - भारत-दर्शन संकलन | Collections

फांसी का झूला झूल गया मर्दाना भगत सिंह ।
दुनियां को सबक दे गया मस्ताना भगत सिंह ।।
फांसी का झूला......
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एक भाव आह्लाद हो ! - डॉ० इंद्रराज बैद 'अधीर'

थकी-हारी, मनमारी, सरकारी राज भाषा है,
बड़ी दीन, पराधीन बिचारी स्वराज भाषा है ।
किसी के इंगितों पर डोलती यह ताज भाषा है,
जिस तरह चाहो, करो, हिन्दी तुम्हारी राजभाषा है ।
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शहीद भगत सिंह - भारत-दर्शन संकलन | Collections

भारत के लिये तू हुआ बलिदान भगत सिंह ।
था तुझको मुल्को-कौम का अभिमान भगत सिंह ।।
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हिन्दी भारत की भाषा - श्रीमती रेवती

भाषा हो या हो राजनीति अब और गुलामी सहय नहीं,
बलिदानों का अपमान सहन करना कोई औदार्य नहीं ।
रवि-रश्मि अपहरण करने को मत बढें किसी के क्रूर हाथ
इन मुसकाते जल-जातों को यह सूर्य ग्रहण स्वीकार्य नहीं ।
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मैं दिल्ली हूँ | पाँच - रामावतार त्यागी | Ramavtar Tyagi

प्राणों से हाथ पड़ा धोना, मेरे कितने ही लालों को ।
बच्चों के प्राणों को हरते, देखा शैतानी भालों को ।।
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मक़सद - राजगोपाल सिंह

उनका मक़सद था
आवाज़ को दबाना
अग्नि को बुझाना
सुगंध को क़ैद करना
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हमारी सभ्यता - मैथिलीशरण गुप्त | Mathilishran Gupt

शैशव-दशा में देश प्राय: जिस समय सब व्याप्त थे,
निःशेष विषयों में तभी हम प्रौढ़ता को प्राप्त थे ।
संसार को पहले हमीं ने ज्ञान-भिक्षा दान की,
आचार की, व्यवहार की, व्यापार की, विज्ञान की ।। ४५ ।।
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मेरी मातृ भाषा हिंदी  - सुनीता बहल

मेरी मातृ भाषा है हिंदी,
जिसके माथे पर सुशोभित है बिंदी।  
देश की है यह सिरमौर,
अंग्रेजी का न चलता इस पर जोर। 
विश्वव्यापी भाषा है चाहे अंग्रेजी,
हिंदी अपनेपन का सुख देती।
मेरी मातृ भाषा है हिंदी,
जिसके माथे पर सुशोभित है बिंदी।
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आओ ! आओ ! भारतवासी । - बाबू जगन्नाथ

आओ ! आओ ! भारतवासी ।
क्या बंगाली ! क्या मदरासी ! ॥
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हिन्दी गान  -  महेश श्रीवास्तव

भाषा संस्कृति प्राण देश के इनके रहते राष्ट्र रहेगा।
हिन्दी का जय घोष गुँजाकर भारत माँ का मान बढ़ेगा।।

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जयरामजी की  - प्रदीप मिश्र

जयरामजी की


सुना जयरामजी की
और कान में जमा हुआ बर्फ़
हृदय की सूखती हुई नदी में
पिघलकर बहने लगा

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उजड़ा चमन सा वतन देखता हूँ - उत्कर्ष त्रिपाठी

न तन देखता हूँ , न मन देखता हूँ
उजड़ा चमन सा वतन देखता हूँ।

दिखते नहीं जहाँ में; कुछ करने वाले ,
बहुतों को कहते कथन देखता हूँ
ईमान यहाँ पर पुरस्कृत न होता,
उनका तो सिर्फ दमन देखता हूँ
न तन देखता हूँ,न मन देखता हूँ
उजड़ा चमन सा वतन देखता हूँ।
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बीस साल बाद - सुदामा पांडेय धूमिल


मेरे चेहरे में वे आँखें लौट आयी हैं
जिनसे मैंने पहली बार जंगल देखा है :
हरे रंग का एक ठोस सैलाब जिसमें सभी पेड़ डूब गए हैं।
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परिंदे की बेज़ुबानी - डॉ शम्भुनाथ तिवारी

बड़ी ग़मनाक दिल छूती परिंदे की कहानी है!
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