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बाल-साहित्य |
बाल साहित्य के अन्तर्गत वह शिक्षाप्रद साहित्य आता है जिसका लेखन बच्चों के मानसिक स्तर को ध्यान में रखकर किया गया हो। बाल साहित्य में रोचक शिक्षाप्रद बाल-कहानियाँ, बाल गीत व कविताएँ प्रमुख हैं। हिन्दी साहित्य में बाल साहित्य की परम्परा बहुत समृद्ध है। पंचतंत्र की कथाएँ बाल साहित्य का एक महत्वपूर्ण स्रोत हैं। हिंदी बाल-साहित्य लेखन की परंपरा अत्यंत प्राचीन है। पंचतंत्र, हितोपदेश, अमर-कथाएँ व अकबर बीरबल के क़िस्से बच्चों के साहित्य में सम्मिलित हैं। पंचतंत्र की कहानियों में पशु-पक्षियों को माध्यम बनाकर बच्चों को बड़ी शिक्षाप्रद प्रेरणा दी गई है। बाल साहित्य के अंतर्गत बाल कथाएँ, बाल कहानियां व बाल कविता सम्मिलित की गई हैं। |
Articles Under this Category |
साखियाँ - कबीर |
जाति न पूछो साध की, पूछ लीजिए ज्ञान। |
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स्कूल में लग जाये ताला | बाल कविता - जयप्रकाश मानस | Jaiprakash Manas |
अब से ऐसा ही हो जाये |
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चिट्ठी | बाल कविता - प्रकाश मनु | Prakash Manu |
चिट्ठी में है मन का प्यार |
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वंदना | बाल कविता - डा. राणा प्रताप सिंह गन्नौरी 'राणा' |
मैं अबोध सा बालक तेरा, |
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बन जाती हूं - दिविक रमेश |
चींचीं चींचीं |
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कौआ और लोमड़ी - अज्ञात |
एक बार एक कौए को एक रोटी मिली। लोमड़ी ने सोचा क्यों न मैं इस कौए को मूर्ख बनाकर रोटी ले लूँ। |
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मैंने झूठ बोला था | बाल कथा - विष्णु प्रभाकर | Vishnu Prabhakar |
एक बालक था। नाम था उसका राम। उसके पिता बहुत बड़े पंडित थे। वह बहुत दिन जीवित नहीं रहे। उनके मरने के बाद राम की माँ अपने भाई के पास आकर रहने लगी। वह एकदम अनपढ़ थे। ऐसे ही पूजा-पाठ का ठोंग करके जीविका चलाते थे। वह झूठ बोलने से भी नहीं हिचकते थे। |
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बाल-दिवस | कविता - भारत-दर्शन संकलन | Collections |
भोले भाले बालक सारे। हैं चाचा नेहरू के प्यारे ।। |
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पद - सूरदास |
मैया, कबहि बढ़ैगी चोटी? |
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जैसा सवाल वैसा जवाब - भारत-दर्शन संकलन |
बादशाह अकबर अपने मंत्री बीरबल को बहुत पसंद करता था। बीरबल की बुद्धि के आगे बड़े-बड़ों की भी कुछ नहीं चल पाती थी। इसी कारण कुछ दरबारी बीरबल से जलते थे। वे बीरबल को मुसीबत में फँसाने के तरीके सोचते रहते थे। |
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चाचा नेहरू, तुम्हें प्रणाम | बाल-दिवस कविता - भारत-दर्शन संकलन | Collections |
तुमने किया स्वदेश स्वतंत्र, फूंका देश-प्रेम का मन्त्र, |
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परीक्षा - प्रेमचंद |
जब रियासत देवगढ़ के दीवान सरदार सुजानसिंह बूढ़े हुए तो परमात्मा की याद आई। जा कर महाराज से विनय की कि दीनबंधु! दास ने श्रीमान् की सेवा चालीस साल तक की, अब मेरी अवस्था भी ढल गई, राज-काज संभालने की शक्ति नहीं रही। कहीं भूल-चूक हो जाए तो बुढ़ापे में दाग लगे। सारी ज़िंदगी की नेकनामी मिट्टी में मिल जाए। |
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पागल हाथी - प्रेमचन्द |
मोती राजा साहब की खास सवारी का हाथी। यों तो वह बहुत सीधा और समझदार था, पर कभी-कभी उसका मिजाज गर्म हो जाता था और वह आपे में न रहता था। उस हालत में उसे किसी बात की सुधि न रहती थी, महावत का दबाव भी न मानता था। एक बार इसी पागलपन में उसने अपने महावत को मार डाला। राजा साहब ने वह खबर सुनी तो उन्हें बहुत क्रोध आया। मोती की पदवी छिन गयी। राजा साहब की सवारी से निकाल दिया गया। कुलियों की तरह उसे लकड़ियां ढोनी पड़तीं, पत्थर लादने पड़ते और शाम को वह पीपल के नीचे मोटी जंजीरों से बांध दिया जाता। रातिब बंद हो गया। उसके सामने सूखी टहनियां डाल दी जाती थीं और उन्हीं को चबाकर वह भूख की आग बुझाता। जब वह अपनी इस दशा को अपनी पहली दशा से मिलाता तो वह बहुत चंचल हो जाता। वह सोचता, कहां मैं राजा का सबसे प्यारा हाथी था और कहां आज मामूली मजदूर हूं। यह सोचकर जोर-जोर से चिंघाड़ता और उछलता। आखिर एक दिन उसे इतना जोश आया कि उसने लोहे की जंजीरें तोड़ डालीं और जंगल की तरफ भागा। |
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मेरी बॉल - दिविक रमेश |
अरे क्या सचमुच गुम हो गई |
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प्यारे बच्चो | बाल कविता - डा. राणा प्रताप सिंह गन्नौरी 'राणा' |
सुबह सवेरे उठकर बच्चो! |
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पद - रैदास |
अब कैसे छूटै राम नाम रट लागी। |
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चाचा नेहरू | बाल कविता - डा. राणा प्रताप सिंह गन्नौरी 'राणा' |
वह मोती का लाल जवाहर, |
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नेहरू-स्मृति-गीत | बाल-दिवस कविता - भारत-दर्शन संकलन | Collections |
जन्म-दिवस पर नेहरू चाचा, याद तुम्हारी आई। |
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दो घड़े - सूर्यकांत त्रिपाठी निराला |
एक घड़ा मिट्टी का बना था, दूसरा पीतल का। दोनों नदी के किनारे रखे थे। इसी समय नदी में बाढ़ आ गई, बहाव में दोनों घड़े बहते चले। बहुत समय मिट्टी के घड़े ने अपने को पीतलवाले से काफी फासले पर रखना चाहा। |
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ज्ञान पहेलियां - मुकेश नादान 'निरूपमा' |
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हार की जीत - सुदर्शन |
माँ को अपने बेटे और किसान को अपने लहलहाते खेत देखकर जो आनंद आता है, वही आनंद बाबा भारती को अपना घोड़ा देखकर आता था। भगवद्-भजन से जो समय बचता, वह घोड़े को अर्पण हो जाता। वह घोड़ा बड़ा सुंदर था, बड़ा बलवान। उसके जोड़ का घोड़ा सारे इलाके में न था। बाबा भारती उसे 'सुल्तान' कह कर पुकारते, अपने हाथ से खरहरा करते, खुद दाना खिलाते और देख-देखकर प्रसन्न होते थे। उन्होंने रूपया, माल, असबाब, ज़मीन आदि अपना सब-कुछ छोड़ दिया था, यहाँ तक कि उन्हें नगर के जीवन से भी घृणा थी। अब गाँव से बाहर एक छोटे-से मन्दिर में रहते और भगवान का भजन करते थे। "मैं सुलतान के बिना नहीं रह सकूँगा", उन्हें ऐसी भ्रान्ति सी हो गई थी। वे उसकी चाल पर लट्टू थे। कहते, "ऐसे चलता है जैसे मोर घटा को देखकर नाच रहा हो।" जब तक संध्या समय सुलतान पर चढ़कर आठ-दस मील का चक्कर न लगा लेते, उन्हें चैन न आता। |
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दोहे - रहीम |
रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय। |
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नेहरू चाचा | बाल-दिवस कविता - भारत-दर्शन संकलन | Collections |
सब नेताओ से न्यारे तुम, बच्चो को सबसे प्यारे तुम, |
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बाल-दिवस है आज साथियो | बाल-दिवस कविता - भारत-दर्शन संकलन | Collections |
बाल-दिवस है आज साथियो, आओ खेलें खेल । |
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छोटी-सी हमारी नदी - रवींद्रनाथ ठाकुर |
छोटी-सी हमारी नदी टेढ़ी-मेढ़ी धार, |
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बंटवारा नहीं होगा - जयप्रकाश भारती |
दो भाई थे । अचानक एक दिन पिता चल बसे । भाइयों में बंटवारे की बात चली-''यह तू ले, वह मैं लूं, वह मैं लूंगा, यह तू ले ले ।'' आए दिन दोनों बैठे सूची बनाते, पर ऐसी सूची न बना सके, जो दोनों को ठीक लगे । जैसे-तैसे बंटवारे का मामला सुलझने लगा, तो एक खरल पर आकर उलझ गया । ''पिता जी अपने लिए इस खरल में दवाइयां घुटवाते थे । उसे तो मैं ही अपने पास रखूंगा ।'' बड़े ने कहा । छोटा तुनककर बोला-''यह तो कभी हो नहीं सकता । दवाइयां घोट-घोटकर तो उन्हें मैं ही देता था । उनकी निशानी के तौर पर मैं इसे रखूंगा ।'' |
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बाबा आज देल छे आए - श्रीधर पाठक |
बाबा आज देल छे आए, |
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हर देश में तू, हर भेष में तू - संत तुकड़ोजी |
हर देश में तू, हर भेष में तू, तेरे नाम अनेक तू एकही है। |
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शतरंज का जादू - गुणाकर मुले |
‘शतरंज के खेल के नियमों को आप न भी जानते हों तो कम से कम इतना तो सभी जानते हैं कि शतरंज चौरस पटल पर खेला जाता है । इस पटल पर ६४ छोटे-छोटे चौकोण होते हैं। |
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नाच रहा जंगल में मोर | बाल कविता - पुरुषोत्तम तिवारी |
हरा सुनहरा नीला काला रंग बिरंगे बूटे वाला |
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दो गौरैया - भीष्म साहनी |
घर में हम तीन ही व्यक्ति रहते हैं-माँ, पिताजी और मैं। पर पिताजी कहते हैं कि यह घर सराय बना हुआ है। हम तो जैसे यहाँ मेहमान हैं, घर के मालिक तो कोई दूसरे ही हैं। |
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चुन्नी मुन्नी - हरिवंश बच्चन |
मुन्नी और चुन्नी में लाग-डाट रहती है । मुन्नी छह बर्ष की है, चुन्नी पाँच की । दोनों सगी बहनें हैं । जैसी धोती मुन्नी को आये, वैसी ही चुन्नी को । जैसा गहना मुन्नी को बने, वैसा ही चुन्नी को । मुन्नी 'ब' में पढ़ती थीँ, चुन्नी 'अ' में । मुन्नी पास हो गयी, चुन्नी फ़ेल । मुन्नी ने माना था कि मैं पास हो जाऊँगी तो महाबीर स्वामी को मिठाई चढ़ाऊंगी । माँ ने उसके लिए मिठाई मँगा दी । चुन्नी ने उदास होकर धीमे से अपनी माँ से पूछा, अम्मा क्या जो फ़ेल हो जाता है वह मिठाई नहीं चढ़ाता? |
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मिठाईवाला - भगवतीप्रसाद वाजपेयी |
बहुत ही मीठे स्वरों के साथ वह गलियों में घूमता हुआ कहता - "बच्चों को बहलानेवाला, खिलौनेवाला।" |
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बन्दर मामा | बाल कविता - दीपक श्रीवास्तव 'नादान' | Deepak Shrivastava |
बन्दर मामा बना रहे थे आम के नीचे खाना, |
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माँ कह एक कहानी - मैथिलीशरण गुप्त |
"माँ, कह एक कहानी !" |
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छोटा जादूगर - जयशंकर प्रसाद |
कार्निवल के मैदान में बिजली जगमगा रही थी। हँसी और विनोद का कलनाद गूंज रहा था। मैं खड़ा था उस छोटे फुहारे के पास, जहां एक लड़का चुपचाप शराब पीने वालों को देख रहा था। उसके गले में फटे कुरते के ऊपर से एक मोटी-सी सूत की रस्सी पड़ी थी और जेब में कुछ ताश के पत्ते थे। उसके मुँह पर गंभीर विषाद के साथ धैर्य की रेखा थी। मैं उसकी ओर न जाने क्यों आकर्षित हुआ। उसके अभाव में भी सम्पन्नता थी। मैंने पूछा, "क्यों जी, तुमने इसमें क्या देखा?" |
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बारिश की मस्ती | बाल कविता - अमृता गोस्वामी |
रिमझिम रिमझिम बारिश आई, |
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एक तिनका - अयोध्या सिंह उपाध्याय |
मैं घमंडों में भरा ऐंठा हुआ, |
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मंजुल भटनागर की बाल-कविताएं | बाल कविता - मंजुल भटनागर |
दादी
चाँद की दादी |
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गिलहरी - अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध' |
कहते जिसे गिलहरी हैं सब । |
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बादल और बारिश | बाल कविता - रवि रंजन गोस्वामी |
बादल गुस्साए थे |
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बंदर - अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध' |
देखो लड़को ! बंदर आया । |
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भैया-बहना | बाल कविता - अमिश भट्ट |
समय से सोता राजू भैया |
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प्रकृति और मनुष्य | बाल कविता - सय्यद अरबाज़ |
प्रकृति हमारी कितनी प्यारी, |
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नाग और चीटियां - विष्णु शर्मा |
एक घने जंगल में एक बड़ा-सा नाग रहता था। वह चिड़ियों के अंडे, मेढ़क तथा छिपकलियों जैसे छोटे-छोटे जीव-जंतुओं को खाकर अपना पेट भरता था। रातभर वह अपने भोजन की तलाश में रहता और दिन निकलने पर अपने बिल में जाकर सो रहता। धीरे-धीरे वह मोटा होता गया। वह इतना मोटा हो गया कि बिल के अंदर-बाहर आना-जाना भी दूभर हो गया। |
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गिल्लू - महादेवी वर्मा |
सोनजुही में आज एक पीली कली लगी है। इसे देखकर अनायास ही उस छोटे जीव का स्मरण हो आया, जो इस लता की सघन हरीतिमा में छिपकर बैठता था और फिर मेरे निकट पहुँचते ही कंधे पर कूदकर मुझे चौंका देता था। तब मुझे कली की खोज रहती थी, पर आज उस लघुप्राण की खोज है। |
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हींगवाला - सुभद्राकुमारी चौहान |
लगभग 35 साल का एक खान आंगन में आकर रुक गया । हमेशा की तरह उसकी आवाज सुनाई दी - ''अम्मा... हींग लोगी?'' |
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हमसे सब कहते - निरंकार देव सेवक |
नहीं सूर्य से कहता कोई |
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मोर - जय प्रकाश भारती |
उमड़ उमड़ कर बादल आते |
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काबुलीवाला - रबीन्द्रनाथ टैगोर |
मेरी पाँच बरस की लड़की मिनी से घड़ीभर भी बोले बिना नहीं रहा जाता। एक दिन वह सवेरे-सवेरे ही बोली, "बाबूजी, रामदयाल दरबान है न, वह 'काक' को 'कौआ' कहता है। वह कुछ जानता नहीं न, बाबूजी।" मेरे कुछ कहने से पहले ही उसने दूसरी बात छेड़ दी। "देखो, बाबूजी, भोला कहता है - आकाश में हाथी सूँड से पानी फेंकता है, इसी से वर्षा होती है। अच्छा बाबूजी, भोला झूठ बोलता है, है न?" और फिर वह खेल में लग गई। |
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गुरु और चेला - सोहन लाल द्विवेदी |
झगड़ने लगे फिर गुरु और चेला, |
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कौन? - सोहन लाल द्विवेदी |
किसने बटन हमारे कुतरे? |
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चिन्टू जी - प्रकाश मनु |
सब पर अपना रोब जमाते |
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गिलहरी का घर | बाल कविता - हरिवंशराय बच्चन |
एक गिलहरी एक पेड़ पर |
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रेल | बाल कविता - हरिवंशराय बच्चन |
आओ हम सब खेलें खेल |
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खिलौनेवाला - सुभद्रा कुमारी चौहान |
वह देखो माँ आज |
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हम दीवानों की क्या हस्ती - भगवतीचरण वर्मा |
हम दीवानों की क्या हस्ती, |
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चाँद का कुरता - रामधारी सिंह दिनकर |
हठ कर बैठा चाँद एक दिन, माता से यह बोला, |
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फ़क़ीर का उपदेश - भारत-दर्शन संकलन |
एक बार गाँव में एक बूढ़ा फ़क़ीर आया । उसने गाँव के बाहर अपना आसन जमाया। वह बड़ा होशियार फ़क़ीर था। वह लोगों को बहुत सी अच्छी-अच्छी बातें बतलाता था। थोड़े ही दिनों में वह मशहूर हो गया । सभी लोग उसके पास कुछ न कुछ पूछने को पहुँचते थे। वह सबको अच्छी सीख देता था। |
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फूलों जैसे उठो खाट से | बाल गीत - क्षेत्रपाल शर्मा |
फूलों जैसे उठो खाट से |
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पारस - रोहित कुमार 'हैप्पी' |
'एक बहुत गरीब आदमी था । अचानक उसे कहीं से पारस-पत्थर मिल गया। बस फिर क्या था ! वह किसी भी लोहे की वस्तु को छूकर सोना बना देता। देखते ही देखते वह बहुत धनवान बन गया ।' बूढ़ी दादी माँ अक्सर 'पारस पत्थर' वाली कहानी सुनाया करती थी । वह कब का बचपन की दहलीज लांघ कर जवानी में प्रवेश कर चुका था किंतु जब-तब किसी न किसी से पूछता रहता, "आपने पारस पत्थर देखा है?" |
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काम हमारे बड़े-बड़े - चिरंजीत |
हम बच्चे हैं छोटे-छोटे, काम हमारे बड़े-बड़े । |
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मीठी वाणी | बाल कविता - प्रभुदयाल श्रीवास्तव |
छत पर आकर बैठा कौवा, |
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बुरा न बोलो बोल रे - आनन्द विश्वास |
बुरा न देखो, बुरा सुनो ना, बुरा न बोलो बोल रे, |
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लोभी दरजी | बाल-कहानी - गिजुभाई |
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सड़क यहीं रहती है | शेखचिल्ली के कारनामें - भारत-दर्शन संकलन |
एक दिन शेखचिल्ली कुछ लड़कों के साथ, अपने कस्बे के बाहर एक पुलिया पर बैठा था। तभी एक सज्जन शहर से आए और लड़कों से पूछने लगे, "क्यों भाई, शेख साहब के घर को कौन-सी सड़क गई है ?" |
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प्रयास करो, प्रयास करो - वीर सिंह |
प्रयास करो, प्रयास करो |
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जैसी दृष्टि - आचार्य विनोबा |
रामदास रामायण लिखते जाते और शिष्यों को सुनाते जाते थे। हनुमान भी उसे गुप्त रुप से सुनने के लिए आकर बैठते थे। समर्थ रामदास ने लिखा, "हनुमान अशोक वन में गये, वहाँ उन्होंने सफेद फूल देखे।" |
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व्यापारी और नक़लची बंदर - अज्ञात |
एक टोपी बेचने वाला व्यापारी था वह नगर से टोपियाँ लाकर गाँव में बेचा करता था। एक दिन वह दोपहर के समय जंगल में जा रहा था कि थककर एक पेड़ के नीचे बैठ गया। उसने टोपियों की गठरी एक तरफ रख दी। थकावट के कारण पेड़ की छाँव और ठंडी हवा के चलते शीघ्र ही टोपी वाले व्यापारी को नींद आ गई। |
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परीक्षा - मुंशी प्रेमचंद | Munshi Premchand |
जब रियासत देवगढ़ के दीवान सरदार सुजानसिंह बूढ़े हुए तो परमात्मा की याद आई। जा कर महाराज से विनय की कि दीनबंधु! दास ने श्रीमान् की सेवा चालीस साल तक की, अब मेरी अवस्था भी ढल गई, राज-काज संभालने की शक्ति नहीं रही। कहीं भूल-चूक हो जाए तो बुढ़ापे में दाग लगे। सारी ज़िंदगी की नेकनामी मिट्टी में मिल जाए। |
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चिड़िया रानी - डॉ रामनिवास मानव | Dr Ramniwas Manav |
सदा फुदकती, कभी न थकती, |
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मिस्टर चूहेराम - डॉ रामनिवास मानव | Dr Ramniwas Manav |
मिस्टर चूं-चूं चूहेराम, |
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राजा का महल | बाल-कविता - रबीन्द्रनाथ टैगोर | Rabindranath Tagore |
नहीं किसी को पता कहाँ मेरे राजा का राजमहल! |
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पंचतत्र की कहानियां | Panchtantra - पंचतंत्र |
संस्कृत नीतिकथाओं में पंचतंत्र सर्वप्रथम माना जाता है। यद्यपि यह पुस्तक अपने मूल रुप में नहीं रह गया है, फिर भी उपलब्ध अनुवादों के आधार पर इसकी मूल रचना तीसरी शताब्दी के आस-पास मान्य है। इस ग्रंथ के रचयिता पं. विष्णु शर्मा थे। कहा जाता है कि जब इस ग्रंथ की रचना पूरी हुई, तब उनकी अयु लगभग 80 वर्ष थी। पंचतंत्र को पाँच तंत्रों (भागों) में बाँटा गया है- |
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नीतिवान सन्यासी - पंचतंत्र |
एक जंगल में हिरण्यक नामक चूहा तथा लघुपतनक नाम का कौवा रहता था। दोनों में प्रगाढ़ मित्रता थी। लघुपतनक हिरण्यक के लिए हर दिन खानें के लिए लाता था । अपने उपकारों से उसने हिरण्यक को ॠणी बना लिया था । एक बार हिरण्यक ने लघुपनक से दुखी मन से कहा-- इस प्रदेश में अकाल पड़ गया है। लोगों ने पक्षियों को फँसाने के लिए अपने छतों पर जाल डाल दिया है। मैं किसी तरह बच पाया हूँ। अतः मैंने इस प्रदेश को छोड़ने का निश्चय किया है। |
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चतुर खरगोश - पंचतंत्र |
एक बड़े से जंगल में शेर रहता था। शेर बहुत गुस्सैल था। सभी जानवर उससे बहुत डरते थे। वह सभी जानवरों को परेशान करता था। वह आए दिन जंगलों में पशु-पक्षियों का शिकार करता था। शेर की इन हरकतों से सभी जानवर चिंतित थे। |
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बुद्धिमान हंस - पंचतंत्र |
एक विशाल वृक्ष था। उसपर बहुत से हंस रहते थे। उनमें एक वृद्ध बुद्धिमान और दूरदर्शी हंस था। उसका सभी हंस आदर करते थे। एक दिन उस वृद्ध हंस ने वृक्ष की जड के निकट एक बेल देखी। बेल उस वृक्ष के तने से लिपटना शुरू कर चुकी थी। इस बेल को देखकर वृद्ध हंस ने कहा, देखो, बेल को नष्ट कर दो। एक दिन यह बेल हम सभी के लिए संकट बन सकती है। |
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लालची कुत्ता - पंचतंत्र |
एक बार एक कुत्ते को कई दिनो तक कुछ खाने को न मिला, बेचारे को बहुत जोर से भूख लगी थी। तभी किसी ने उसे एक रोटी दे दी, कुत्ता जब खाने लगा तो उसने देखा दूसरे कुते भी उस से रोटी छीनना चाहते हैं। इसलिए मुँह में रोटी दबाए, वह किसी सुरक्षित स्थान को खोजने के लिए वहां से भाग खड़ा हुआ। थोड़ी दूरी पर उसे एक लकड़ी का पुल दिखाई दिया। कुते ने सोचा चलो दूसरी तरफ़ जा कर आराम से रोटी खाता हूँ। |
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सिंह को जीवित करने वाले - विष्णु शर्मा |
किसी शहर में चार मित्र रहते थे। वे हमेशा एक साथ रहते थे। उनमें से तीन बहुत ज्ञानी थे। चौथा दोस्त इतना ज्ञानी नहीं था फिर भी वह दुनियादारी की बातें बहुत अच्छी तरह जानता था। |
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नकल | पंचतंत्र - विष्णु शर्मा |
एक पहाड़ की ऊंची चोटी पर एक बाज रहता था। पहाड़ की तराई में बरगद के पेड़ पर एक कौआ अपना घोंसला बनाकर रहता था। वह बड़ा चालाक और धूर्त था। उसका प्रयासरहता कि बिना परिश्रम किए खाने को मिल जाए। पेड़ के आसपास खोह में खरगोश रहते थे। जब भी खरगोश बाहर आते तो बाज ऊंची उड़ान भरते और एकाध खरगोश को उठाकर ले जाते। |
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जलाओ दीप जी भर कर - आनन्द विश्वास (Anand Vishvas) |
जलाओ दीप जी भर कर, |
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छन्नूजी - प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Prabhudyal Shrivastava |
दाल भात रोटी मिलती तो, |
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मछली की समझाइश - प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Prabhudyal Shrivastava |
मेंढक बोला चलो सड़क पर, |
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दीप जलाओ | दीवाली बाल कविता - भारत-दर्शन संकलन | Collections |
दीप जलाओ दीप जलाओ |
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