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कहानियां |
कहानियों के अंतर्गत यहां आप हिंदी की नई-पुरानी कहानियां पढ़ पाएंगे जिनमें कथाएं व लोक-कथाएं भी सम्मिलित रहेंगी। पढ़िए मुंशी प्रेमचंद, रबीन्द्रनाथ टैगोर, भीष्म साहनी, मोहन राकेश, चंद्रधर शर्मा गुलेरी, फणीश्वरनाथ रेणु, सुदर्शन, कमलेश्वर, विष्णु प्रभाकर, कृष्णा सोबती, यशपाल, अज्ञेय, निराला, महादेवी वर्मा व लियो टोल्स्टोय की कहानियां। |
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पानी और पुल - महीप सिंह |
गाड़ी ने लाहौर का स्टेशन छोड़ा तो एकबारगी मेरा मन काँप उठा। अब हम लोग उस ओर जा रहे थे जहाँ चौदह साल पहले आग लगी थी। जिसमें लाखों जल गये थे, और लाखों पर जलने के निशान आज तक बने हुए थे। मुझे लगा हमारी गाड़ी किसी गहरी, लम्बी अन्धकारमय गुफा में घुस रही है। और हम अपना सब-कुछ इस अन्धकार को सौंप दे रहे हैं। |
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पाजेब - जैनेन्द्र कुमार | Jainendra |
बाजार में एक नई तरह की पाजेब चली है। पैरों में पड़कर वे बड़ी अच्छी मालूम होती हैं। उनकी कड़ियां आपस में लचक के साथ जुड़ी रहती हैं कि पाजेब का मानो निज का आकार कुछ नहीं है, जिस पांव में पड़े उसी के अनुकूल ही रहती हैं। |
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करवा का व्रत - यशपाल | Yashpal |
कन्हैयालाल अपने दफ्तर के हमजोलियों और मित्रों से दो तीन बरस बड़ा ही था, परन्तु ब्याह उसका उन लोगों के बाद हुआ। उसके बहुत अनुरोध करने पर भी साहब ने उसे ब्याह के लिए सप्ताह-भर से अधिक छुट्टी न दी थी। लौटा तो उसके अन्तरंग मित्रों ने भी उससे वही प्रश्न पूछे जो प्रायः ऐसे अवसर पर दूसरों से पूछे जाते हैं और फिर वही परामर्श उसे दिये गये जो अनुभवी लोग नवविवाहितों को दिया करते हैं। |
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परदा | कहानी - यशपाल | Yashpal |
चौधरी पीरबख्श के दादा चुंगी के महकमे में दारोगा थे । आमदनी अच्छी थी । एक छोटा, पर पक्का मकान भी उन्होंने बनवा लिया । लड़कों को पूरी तालीम दी । दोनों लड़के एण्ट्रेन्स पास कर रेलवे में और डाकखाने में बाबू हो गये । चौधरी साहब की ज़िन्दगी में लडकों के ब्याह और बाल-बच्चे भी हुए, लेकिन ओहदे में खास तरक्की न हुई; वही तीस और चालीस रुपये माहवार का दर्जा । |
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सबसे सुन्दर लड़की | कहानी - विष्णु प्रभाकर | Vishnu Prabhakar |
समुद्र के किनारे एक गाँव था । उसमें एक कलाकार रहता था । वह दिन भर समुद्र की लहरों से खेलता रहता, जाल डालता और सीपियाँ बटोरता । रंग-बिरंगी कौड़ियां, नाना रूप के सुन्दर-सुन्दर शंख चित्र-विचित्र पत्थर, न जाने क्या-क्या समुद्र जाल में भर देता । उनसे वह तरह-तरह के खिलौने, तरह-तरह की मालाएँ तैयार करता और पास के बड़े नगर में बेच आता । |
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लौटना - सुशांत सुप्रिय की कहानी - सुशांत सुप्रिय |
समुद्र का रंग आकाश जैसा था । वह पानी में तैर रही थी । छप्-छप्, छप्-छप् । उसे तैरना कब आया ? उसने तो तैरना कभी नहीं सीखा । फिर यह क्या जादू था ? लहरें उसे गोद में उठाए हुए थीं । एक लहर उसे दूसरी लहर की गोद में सौंप रही थी । दूसरी लहर उसे तीसरी लहर के हवाले कर रही थी । सामने, पीछे, दाएँ, बाएँ दूर तक फैला समुद्र था । समुद्र-ही समुद्र। एक अंतहीन नीला विस्तार । |
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डाची | कहानी - उपेन्द्रनाथ अश्क | Upendranath Ashk |
काट* 'पी सिकंदर' के मुसलमान जाट बाक़र को अपने माल की ओर लालच भरी निगाहों से तकते देखकर चौधरी नंदू पेड़ की छाँह में बैठे-बैठे अपनी ऊंची घरघराती आवाज़ में ललकार उठा, "रे-रे अठे के करे है?*" और उसकी छह फुट लंबी सुगठित देह, जो वृक्ष के तने के साथ आराम कर रही थी, तन गई और बटन टूटे होने का कारण, मोटी खादी के कुर्ते से उसका विशाल सीना और उसकी मज़बूत बाहें दिखाई देने लगीं। |
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