अपनी सरलता के कारण हिंदी प्रवासी भाइयों की स्वत: राष्ट्रभाषा हो गई। - भवानीदयाल संन्यासी।

बुरा न बोलो बोल रे (बाल-साहित्य )

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Author: आनन्द विश्वास

बुरा न देखो, बुरा सुनो ना, बुरा न बोलो बोल रे,
वाणी में मिसरी तो घोलो, बोल-बोल को तोल रे।
मानव मर जाता है लेकिन,
शब्द कभी ना मरता है।
शब्द-बाण से आहत मन का,
घाव कभी ना भरता है।
सौ-सौ बार सोच कर बोलो, बात यही अनमोल रे,
बुरा न देखो, बुरा सुनो ना, बुरा न बोलो बोल रे।

पांचाली के शब्द-बाण से,
कुरूक्षेत्र रंग लाल हुआ।
जंगल-जंगल भटके पांडव,
चीरहरण, क्या हाल हुआ।
बोल सको तो अच्छा बोलो, वर्ना मुँह मत खोल रे,
बुरा न देखो, बुरा सुनो ना, बुरा न बोलो बोल रे।

जो देखोगे और सुनोगे,
वैसा ही मन हो जायेगा।
अच्छी बातें, अच्छा दर्शन,
जीवन निर्मल हो जायेगा।
अच्छा मन, सबसे अच्छा धन, मनवा जरा टटोल रे,
बुरा न देखो, बुरा सुनो ना, बुरा न बोलो बोल रे।


कोयल बोले मीठी वाणी,
कानों में रस घोले है।
पिहु-पिहु मन मोर नाचता,
सबके मन को मोहे है।
खट्टी अमियाँ खाकर मिट्ठू, मीठा-मीठा बोल रे।
बुरा न देखो, बुरा सुनो ना, बुरा न बोलो बोल रे।

- आनन्द विश्वास
anandvishvas@gmail.com


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