देशभाषा की उन्नति से ही देशोन्नति होती है। - सुधाकर द्विवेदी।

बुद्धिमान हंस (बाल-साहित्य )

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Author: पंचतंत्र

एक विशाल वृक्ष था। उसपर बहुत से हंस रहते थे। उनमें एक वृद्ध बुद्धिमान और दूरदर्शी हंस था। उसका सभी हंस आदर करते थे। एक दिन उस वृद्ध हंस ने वृक्ष की जड के निकट एक बेल देखी। बेल उस वृक्ष के तने से लिपटना शुरू कर चुकी थी। इस बेल को देखकर वृद्ध हंस ने कहा, देखो, बेल को नष्ट कर दो। एक दिन यह बेल हम सभी के लिए संकट बन सकती है।

एक युवा हंस ने हँसते हंसते हुए प्रश्न किया, ‘‘यह छोटी-सी बेल हम सभी के लिए कैसे कष्टदायी सिद्ध हो सकती है?’’

वृद्ध ने समझाया-‘‘धीरे-धीरे यह पेड़ के तने से ऊपर की ओर चढ़ती आएगी, और यह वृक्ष के ऊपर तक आने के लिए एक सीढ़ी जैसी बन जाएगी। कोई भी आखेटक इसके सहारे चढ़कर, हम तक पहुंच जाएगा और हम सभी मारे जाएंगे।’’

युवा हंस को विश्वास नहीं हो रहा था। अन्य हंसों ने भी ‘एक छोटी सी बेल के सीढी बन जाने' की बात को गंभीरता से नहीं लिया।

समय बीतता गया। बेल धीरे-धीरे बड़ी होती गई। एक दिन जब सभी हंस दाना चुगने बाहर गए हुए थे, तब एक आखेटक उधर आया। पेड़ के ऊपर तक जाती लता से सीढ़ी का काम ले, वह वरिष पर ऊपर चढ़ आया और जाल बिछाकर चला गया। सांयकाल को हंसों के लौटने पर सभी हंस शिकारी के बिछाए जाल में बुरी तरह फँस गए। तब सभी को अपनी अज्ञान का भान हुआ लेकिन अब देर हो चुकी थी।

एक हंस ने वृद्ध हंस से गुहार लगाई, ‘‘हमें क्षमा करें, हम सबसे चूक हो गई, इस संकट से निकलने का सुझाव भी आप ही बताएं।’’

सभी हंसों द्वारा चूक स्वीकारने पर वृद्ध हंस ने उन्हें उपाय बताया, ‘‘मेरी बात ध्यान से सुनो। सुबह जब आखेटक आएगा, तब सभी मृतावास्था में पडे रहना, आखेटक तुम्हें मृत समझकर जाल से निकाल कर धरती पर रखता जाएगा। जैसे ही वह अंतिम हंस को नीचे रखेगा, मैं सीटी बजाऊंगा। मेरी सीटी सुनते ही सब उड जाना।’’

प्रात: काल आखेटक आया। सभी हंसो ने वैसा ही किया, जैसा वृद्ध हंस ने समझाया था, आखेटक हंसों को मृत समझकर धरती पर रखता गया। जैसे ही उसने अंतिम हंस को ज़मीन पर रखा, वृद्ध हंस ने सीटी बाजा दी और सभी हंस उड गए। आखेटक आश्चर्यचकित देखता रह गया। 

सभी हंसों ने वृद्ध हंस की बुद्धिमता की सराहन की। आज उसी के कारण सभी हंसों के जीवन रक्षा हो पाई थी।

[भारत-दर्शन संकलन]

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