देशभाषा की उन्नति से ही देशोन्नति होती है। - सुधाकर द्विवेदी।

छन्नूजी

 (बाल-साहित्य ) 
Print this  
रचनाकार:

 प्रभुद‌याल‌ श्रीवास्त‌व‌ | Prabhudyal Shrivastava

दाल भात रोटी मिलती तो,
छन्नू नाक चढ़ाते।
पूड़ी परांठे रोज रोज ही,
मम्मी से बनवाते।

हुआ दर्द जब पेट,रात को,
तड़फ तड़फ चिल्लाये।
बड़े डॉक्टर ने इंजेक्शन,
आकर चार लगाये।

छन्नूजी अब दाल भात या,
रोटी ही खाते हैं।
पूड़ी परांठे दिए किसी ने,
गुस्सा हो जाते हैं।

- प्रभुदयाल श्रीवास्तव

 

Back
 
Post Comment
 
 

सब्स्क्रिप्शन

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें