साहित्य की उन्नति के लिए सभाओं और पुस्तकालयों की अत्यंत आवश्यकता है। - महामहो. पं. सकलनारायण शर्मा।
पंचतंत्र की कहानियाँ
पंचतंत्र की कहानियों की रचना का इतिहास भी बडा ही रोचक हैं। लगभग 2000 वर्षों पूर्व भारत वर्ष के दक्षिणी हिस्से में महिलारोप्य नामक नगर में राजा अमरशक्ति का शासन था। उसके तीन पुत्र बहुशक्ति, उग्रशक्ति और अनंतशक्ति थे। राजा अमरशक्ति जितने उदार प्रशासक और कुशल नीतिज्ञ थे, उनके पुत्र उतने ही मूर्ख और अहंकारी थे। राजा ने उन्हें व्यवहारिक शिक्षा देने व्यवहारिक शिक्षा देने की बहुत कोशिश की परंतु किसी भी प्रकार से बात नहीं बनी। हारकर एक दिन राजा ने अपने मंत्रियों से मंत्रणा की। राजा अमरशक्ति के मंत्रिमंडल में कई कुशल, दूरदर्शी और योग्य मंत्री थे, उन्हीं में से एक मंत्री सुमति ने राजा को परामर्श दिया कि पंडित विष्णु शर्मा सर्वशास्त्रों के ज्ञाता और एक कुशल ब्राह्मण हैं, यदि राजकुमारों को शिक्षा देने और व्यवहारिक रुप से प्रक्षित करने का उत्तरदायित्व पंडित पंडित विष्णु शर्मा को सौंपा जाए तो उचित होगा, वे अल्प समय में ही राजकुमारों को शिक्षित करने की सामर्थ रखते हैं।

राजा अमरशक्ति ने पंडित विष्णु शर्मा से अनुरोध किया और पारितोषिक के रूप में उन्हें सौ गांव देने का वचन दिया। पंडित विष्णु शर्मा ने पारितोषिक को तो अस्वीकार कर दिया, परंतु राजकुमारों को शिक्षित करने के कार्य को एक चुनौती के रुप में स्वीकार किया। इस स्वीकॄति के साथ ही उन्होंने घोषणा की कि मैं यह असंभव कार्य मात्र छः महिनों में पूर्ण करुंगा, यदि मैं ऐसा न कर सका तो महाराज मुझे मॄत्युदंड दे सकते हैं। पंडित विष्णु शर्मा की यह भीष्म प्रतीज्ञा सुनकर महाराज अमरशक्ति निश्चिंत होकर अपने शासन-कार्य में व्यस्त हो गए और पंडित विष्नु शर्मा तीनों राजकुमारों को अपने आश्रम में ले आए।

पंडित विष्णु शर्मा ने राजकुमारों को विविध प्रकार की नीतिशास्त्र से संबंधित कथाएं सुनाई। उन्होंने इन कथाओं में पात्रों के रुप में पशु-पक्षियों का वर्णन किया और अपने विचारों को उनके मुख से व्यक्त किया। पशु-पक्षियों को ही आधार बनाकर उन्होंने राजकुमारों को उचित-अनुचित आदि का ज्ञान दिया व व्यवहारिक रुप से प्रशिक्षित करना आंरम्भ किया । राजकुमारों की शिक्षा समाप्त होने के बाद पंडित विष्णु शर्मा ने इन कहानियों को पंचतंत्र की प्रेरक कहानियां के संग्रह के रुप में संकलित किया।

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नाग और चीटियां - विष्णु शर्मा

एक घने जंगल में एक बड़ा-सा नाग रहता था। वह चिड़ियों के अंडे, मेढ़क तथा छिपकलियों जैसे छोटे-छोटे जीव-जंतुओं को खाकर अपना पेट भरता था। रातभर वह अपने भोजन की तलाश में रहता और दिन निकलने पर अपने बिल में जाकर सो रहता। धीरे-धीरे वह मोटा होता गया। वह इतना मोटा हो गया कि बिल के अंदर-बाहर आना-जाना भी दूभर हो गया।
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पंचतत्र की कहानियां | Panchtantra - पंचतंत्र

संस्कृत नीतिकथाओं में पंचतंत्र सर्वप्रथम माना जाता है। यद्यपि यह पुस्तक अपने मूल रुप में नहीं रह गया है, फिर भी उपलब्ध अनुवादों के आधार पर इसकी मूल रचना तीसरी शताब्दी के आस-पास मान्य है। इस ग्रंथ के रचयिता पं. विष्णु शर्मा थे। कहा जाता है कि जब इस ग्रंथ की रचना पूरी हुई, तब उनकी अयु लगभग 80 वर्ष थी। पंचतंत्र को पाँच तंत्रों (भागों) में बाँटा गया है-
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नीतिवान सन्यासी - पंचतंत्र

एक जंगल में हिरण्यक नामक चूहा तथा लघुपतनक नाम का कौवा रहता था। दोनों में प्रगाढ़ मित्रता थी। लघुपतनक हिरण्यक के लिए हर दिन खानें के लिए लाता था । अपने उपकारों से उसने हिरण्यक को ॠणी बना लिया था । एक बार हिरण्यक ने लघुपनक से दुखी मन से कहा-- इस प्रदेश में अकाल पड़ गया है। लोगों ने पक्षियों को फँसाने के लिए अपने छतों पर जाल डाल दिया है। मैं किसी तरह बच पाया हूँ। अतः मैंने इस प्रदेश को छोड़ने का निश्चय किया है।
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चतुर खरगोश  - पंचतंत्र

एक बड़े से जंगल में शेर रहता था। शेर बहुत गुस्सैल था। सभी जानवर उससे बहुत डरते थे। वह सभी जानवरों को परेशान करता था। वह आए दिन जंगलों में पशु-पक्षियों का शिकार करता था। शेर की इन हरकतों से सभी जानवर चिंतित थे।
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बुद्धिमान हंस - पंचतंत्र

एक विशाल वृक्ष था। उसपर बहुत से हंस रहते थे। उनमें एक वृद्ध बुद्धिमान और दूरदर्शी हंस था। उसका सभी हंस आदर करते थे। एक दिन उस वृद्ध हंस ने वृक्ष की जड के निकट एक बेल देखी। बेल उस वृक्ष के तने से लिपटना शुरू कर चुकी थी। इस बेल को देखकर वृद्ध हंस ने कहा, देखो, बेल को नष्ट कर दो। एक दिन यह बेल हम सभी के लिए संकट बन सकती है।
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लालची कुत्ता - पंचतंत्र

एक बार एक कुत्ते को कई दिनो तक कुछ खाने को न मिला, बेचारे को बहुत जोर से भूख लगी थी। तभी किसी ने उसे एक रोटी दे दी, कुत्ता जब खाने लगा तो उसने देखा दूसरे कुते भी उस से रोटी छीनना चाहते हैं। इसलिए मुँह में रोटी दबाए, वह किसी सुरक्षित स्थान को खोजने के लिए वहां से भाग खड़ा हुआ। थोड़ी दूरी पर उसे एक लकड़ी का पुल दिखाई दिया। कुते ने सोचा चलो दूसरी तरफ़ जा कर आराम से रोटी खाता हूँ।
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सिंह को जीवित करने वाले  - विष्णु शर्मा

किसी शहर में चार मित्र रहते थे। वे हमेशा एक साथ रहते थे। उनमें से तीन बहुत ज्ञानी थे। चौथा दोस्त इतना ज्ञानी नहीं था फिर भी वह दुनियादारी की बातें बहुत अच्छी तरह जानता था।

एक दिन उन्होंने निश्चय किया कि वे दूर देश घूम-घूमकर देखेंगे और कुछ दौलत कमाकर लाएंगे। वे चारों एक साथ निकल पड़े। जल्दी ही वे एक घने जंगल में पहुँचे। रास्ते में उन्होंने किसी जानवर की हड्डियाँ ज़मीन पर खड़ी देखीं। एक ज्ञानी बोला, ‘‘हमें अपना ज्ञान परखने का मौका मिला है।’’

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नकल | पंचतंत्र - विष्णु शर्मा

एक पहाड़ की ऊंची चोटी पर एक बाज रहता था। पहाड़ की तराई में बरगद के पेड़ पर एक कौआ अपना घोंसला बनाकर रहता था। वह बड़ा चालाक और धूर्त था। उसका प्रयासरहता कि बिना परिश्रम किए खाने को मिल जाए। पेड़ के आसपास खोह में खरगोश रहते थे। जब भी खरगोश बाहर आते तो बाज ऊंची उड़ान भरते और एकाध खरगोश को उठाकर ले जाते।
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