भारतेंदु और द्विवेदी ने हिंदी की जड़ पाताल तक पहुँचा दी है; उसे उखाड़ने का जो दुस्साहस करेगा वह निश्चय ही भूकंपध्वस्त होगा।' - शिवपूजन सहाय।

शास्त्रीजी - कमलाप्रसाद चौरसिया | कविता

 (काव्य) 
Print this  
रचनाकार:

 भारत-दर्शन संकलन | Collections

पैदा हुआ उसी दिन,
जिस दिन बापू ने था जन्म लिया
भारत-पाक युद्ध में जिसने
तोड़ दिया दुनिया का भ्रम।

एक रहा है भारत सब दिन,
सदा रहेगा एक।
युगों-युगों से रहे हैं इसमें
भाषा-भाव अनेक।

आस्था और विश्वास अनेकों
होते हैं मानव के।
लेकिन मानवता मानव की
रही सदा ही नेक।
कद से छोटा था लेकिन था
कर्म से बड़ा महान।
हो सकता है कौन, गुनो वह
संस्कृति की संतान।

-कमला प्रसाद चौरसिया

 

Back
 
Post Comment
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश