समाज और राष्ट्र की भावनाओं को परिमार्जित करने वाला साहित्य ही सच्चा साहित्य है। - जनार्दनप्रसाद झा 'द्विज'।

नीरज के लोकप्रिय दोहे

 (काव्य) 
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रचनाकार:

 गोपालदास ‘नीरज’

गागर में सागर भरे मुँदरी में नवरत्न। 
अगर न ये दोहा करे, है सब व्यर्थ प्रयत्न॥ 

भक्तों में कोई नहीं बड़ा सूर से नाम।
उसने आँखों के बिना देख लिये घनश्याम॥

हिन्दी, हिन्दू, हिन्द ही है इसकी पहचान।
इसीलिए इस देश को कहते हिन्दुस्तान॥

कर्ज न लो, ना कर्ज़ दो, दोनों से हो हानि।
ऋण देकर धन डूबता, ऋण लेकर हो ग्लानि॥

राजनीति ये वोट की, ये कुर्सी की चाह।
कर देगी निश्चित हमें ये इक रोज़ तबाह॥

हम तो बस इक पेड़ हैं खड़े प्रेम के गाँव।
खुद तो जलते धूप में औरों को दें छाँव॥

खींचे बिना कमान ज्यों चले न कोई तीर।
तैसे बिन पुरुषार्थ के साथ न दे तकदीर॥

चाहो बसो पहाड़ पर या फूलों के गाँव।
माँ के आँचल से अधिक शीतल कहीं न छाँव॥

बड़े हुए हम थामकर जिसकी बूढ़ी बाँह।
याद हमें है आज भी उस बरगद की छाँह॥

क्षण-क्षण बदले रंग वो कहें जिसे संसार।
कुछ भी स्थिर है नहीं नफरत हो या प्यार॥

-नीरज

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