समाज और राष्ट्र की भावनाओं को परिमार्जित करने वाला साहित्य ही सच्चा साहित्य है। - जनार्दनप्रसाद झा 'द्विज'।

सृजन पर दो हिन्दी रुबाइयां

 (काव्य) 
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रचनाकार:

 उदयभानु हंस | Uday Bhanu Hans

अनुभूति से जो प्राणवान होती है,
उतनी ही वो रचना महान होती है।
कवि के ह्रदय का दर्द, नयन के आँसू,
पीकर ही तो रचना जवान होती है॥

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सुगंध जिसमें न हो वो सुमन नहीं होता,
सुरा का घूंट कभी आचमन नहीं होता।
प्रसव की पीड़ा जरूरी है एक माँ के लिए,
बिना तपस्या के लेखन 'सृजन' नहीं होता॥

-उदयभानु 'हंस'
 राजकवि, हरियाणा

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