भारत-दर्शन::इंटरनेट पर विश्व की सबसे पहली ऑनलाइन हिंदी साहित्यिक पत्रिका
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हंसों के वंशज हैं लेकिनकव्वों की कर रहे ग़ुलामीयूँ अनमोल लम्हों की प्रतिदिनहोती देख रहे नीलामीदर्पण जैसे निर्मल मन कोक्यों पत्थर के नाम कर दिया
पाने का लालच क्या जागागाँव की गठरी भी खो बैठेस्वाभिमान, सम्मान सम्पदागिरवी रख कँगले हो बैठेहरा-भरा संसार न जानेक्यों पतझर के नाम कर दिया
-राजगोपाल सिंह
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