समाज और राष्ट्र की भावनाओं को परिमार्जित करने वाला साहित्य ही सच्चा साहित्य है। - जनार्दनप्रसाद झा 'द्विज'।

जीवन और मौसम

 (काव्य) 
Print this  
रचनाकार:

 डॉ रमेश पोखरियाल निशंक

छँटने लगे हैं बादल
धुंध होने लगी कम,
नई सुबह की है आहट
बदलने लगा मौसम। 
दिखने लगा रास्ता
मिटने लगा है भ्रम,
जीवन की घोर बाधाएँ
दृढ़ता के सामने
पड़ने लगी हैं कम। 
प्रकृति के साथ-साथ
जीवन का भी
बदलने लगा जीवन।

- रमेश पोखरियाल 'निशंक'
      [संघर्ष जारी है]

 

 

 

Back
 
Post Comment
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश