हमारी हिंदी भाषा का साहित्य किसी भी दूसरी भारतीय भाषा से किसी अंश से कम नहीं है। - (रायबहादुर) रामरणविजय सिंह।

कसौटी

 (काव्य) 
Print this  
रचनाकार:

 डॉ रमेश पोखरियाल निशंक

जो चटटानों से न टकराए
वो कब झरना बनता है,
उलझते टकराते इन राहों में
ये झरना हरपल छनता है।

दुस्सह थपेड़ों को सहकर
बाधाएँ पार जो करता है,
वही जीवन के अभिनव पथ पर
लक्ष्य-शिखर को पाता है।

कठिन डगर की आग में तपकर
कर्म हथौड़ों से सधता है,
दिन-रात कसौटी पर हो खरा
वो स्वर्ण समान ही बनता है।

- रमेश पोखरियाल 'निशंक'
    [सृजन के बीज]

 

Back
 
Post Comment
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश